Anti defection law MCQs in Hindi (दल-बदल विरोधी कानून)

Anti defection law MCQs in Hindi

Q1. दल-बदल विरोधी कानून (Anti Defection Law) से संविधान का कौन – सा संशोधन संबंधित है ?
A.51वां
B.52वां
C.53वां
D.54वां

Q2. निम्नलिखित संविधान संशोधन में से कौन संसद में पक्ष परिवर्तन करने से निषिद्ध करता है ?
A.42वां
B.44वां
C.52वां
D.53वां
Q3. संविधान में जोड़ी गई 10वीं अनुसूची किससे संबंधित है ?
A.मिजोरम राज्य के लिए विशेष प्रावधानों से
B.दल-बदल के आधार पर योग्यता सम्बन्धी प्रावधानों से
C.सिक्किम्म के स्तर से संबंधित शर्तों से
D.उपर्युक्त में से कोई नहीं
Q4. दल-बदल विरोधी अधिनियम के अंतर्गत भारतीय संविधान में किसी सदस्य की अयोग्यता अथवा योग्यता पर निर्णय करने का अधिकार किसको प्राप्त है ?
A.सर्वोच्च न्यायालय को
B.लोकसभा अध्यक्ष को
C.सभापति, राज्यसभा को
D.संयुक्त संसदीय समिति को
Q5. सर्वोच्च न्यायालय ने दल-बदल कानून (52वां संविधान संशोधन) की किस धारा या पैरा को असंवैधानिक करार दिया है
A.छठवें
B.सातवें
C.किसी को नहीं
D.समस्त दल-बदल कानून को
Q6. विधानसभा में किसी दल के निर्वाचित सदस्यों के दल-बदल पर निम्नलिखित में किसने प्रतिबन्ध लगाया है ?
A.संविधान का 52वां संशोधन कानून
B.जनता से प्रतिनिधित्व का कानून
C.संविधान का 42वां संशोधन
D.संविधान का 44वां संशोधन
Q7. निम्नलिखित में से किस अधिनियम द्वारा किसी पार्टी के टिकट पर निर्वाचित सदस्य को दल-बदल करने से रोका गया है ?
A.52वां संविधान संशोधन अधिनियम
B.सार्वजनिक प्रतिनिधित्व अधिनियम
C.राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम
D.आंतरिक सुरक्षा रख-रखाव अधिनियम
Q8. संसद का एक निर्दलीय सदस्य कितने समय के अंदर किसी राजनीतिक दल का सदस्य बन जाना चाहिए ताकि दल-बदल कानून अंतर्गत उसके विरुद्ध कोई कारवाई न हो सके ?
A.1 वर्ष
B.3 माह
C.6 माह
D.9 माह
Q9. भारत के संविधान की निम्नलिखित में से कौन – सी एक अनुसूची में दल-बदल विरोधी कानून विषय का प्रावधान है ?
A.दूसरी
B.पांचवी
C.आठवीं
D.दसवीं
Q10. दल-बदल निरोधक अधिनियम जिस तिथि को पारित हुआ, वह कौन – सी थी ?
A.17 जनवरी, 1985
B.15 फरवरी, 1985
C.30 मार्च, 1985
D.21 अप्रैल, 1985

National Commission for SCs and STs mcq in hindi( Best 50 )

Polity 500 One Liner Questions And Answers

 

 Anti defection law (दल-बदल विरोधी कानून)

दल-बदल विरोधी कानून क्या है?

  • वर्ष 1985 में 52वें संविधान संशोधन के माध्यम से देश में ‘दल-बदल विरोधी कानून’ पारित किया गया। साथ ही संविधान की दसवीं अनुसूची जिसमें दल-बदल विरोधी कानून शामिल है को संशोधन के माध्यम से भारतीय से संविधान जोड़ा गया।
  • इस कानून का मुख्य उद्देश्य भारतीय राजनीति में ‘दल-बदल’ की कुप्रथा को समाप्त करना था, जो कि 1970 के दशक से पूर्व भारतीय राजनीति में काफी प्रचलित थी।
  • दल-बदल विरोधी कानून के मुख्य प्रावधान:
    दल-बदल विरोधी कानून के तहत किसी जनप्रतिनिधि को अयोग्य घोषित किया जा सकता है यदि:

    • एक निर्वाचित सदस्य स्वेच्छा से किसी राजनीतिक दल की सदस्यता छोड़ देता है।
    • कोई निर्दलीय निर्वाचित सदस्य किसी राजनीतिक दल में शामिल हो जाता है।
    • किसी सदस्य द्वारा सदन में पार्टी के पक्ष के विपरीत वोट किया जाता है।
    • कोई सदस्य स्वयं को वोटिंग से अलग रखता है।
    • छह महीने की समाप्ति के बाद कोई मनोनीत सदस्य किसी राजनीतिक दल में शामिल हो जाता है।

अयोग्य घोषित करने की शक्ति

  • कानून के अनुसार, सदन के अध्यक्ष के पास सदस्यों को अयोग्य करार देने संबंधी निर्णय लेने की शक्ति है।
  • यदि सदन के अध्यक्ष के दल से संबंधित कोई शिकायत प्राप्त होती है तो सदन द्वारा चुने गए किसी अन्य सदस्य को इस संबंध में निर्णय लेने का अधिकार है।

दल-बदल विरोधी कानून के अपवाद

कानून में कुछ ऐसी विशेष परिस्थितियों का उल्लेख किया गया है, जिनमें दल-बदल पर भी अयोग्य घोषित नहीं किया जा सकेगा। दल-बदल विरोधी कानून में एक राजनीतिक दल को किसी अन्य राजनीतिक दल में या उसके साथ विलय करने की अनुमति दी गई है बशर्ते कि उसके कम-से-कम दो-तिहाई विधायक विलय के पक्ष में हों। ऐसे में न तो दल-बदल रहे सदस्यों पर कानून लागू होगा और न ही राजनीतिक दल पर। इसके अलावा सदन का अध्यक्ष बनने वाले सदस्य को इस कानून से छूट प्राप्त है।

क्यों लाया गया दल-बदल विरोधी कानून?

  • लोकतांत्रिक प्रक्रिया में राजनीतिक दल काफी अहम भूमिका अदा करते हैं और सैद्धांतिक तौर पर राजनीतिक दलों की महत्त्वपूर्ण भूमिका यह है कि वे सामूहिक रूप से लोकतांत्रिक फैसला लेते हैं।
  • हालाँकि आज़ादी के कुछ ही वर्षों के भीतर यह महसूस किया जाने लगा कि राजनीतिक दलों द्वारा अपने सामूहिक जनादेश की अनदेखी की जाने लगी है। विधायकों और सांसदों के जोड़-तोड़ से सरकारें बनने और गिरने लगीं।
  • 1960-70 के दशक में ‘आया राम गया राम’ की राजनीति देश में काफी प्रचलित हो चली थी। दरअसल अक्तूबर 1967 को हरियाणा के एक विधायक गया लाल ने 15 दिनों के भीतर 3 बार दल-बदलकर इस मुद्दे को राजनीतिक मुख्यधारा में ला खड़ा किया था।
  • इसी के साथ जल्द ही दलों को मिले जनादेश का उल्लंघन करने वाले सदस्यों को चुनाव में भाग लेने से रोकने तथा अयोग्य घोषित करने की ज़रूरत महसूस होने लगी।
  • अंततः वर्ष 1985 में संविधान संशोधन के ज़रिये दल-बदल विरोधी कानून लाया गया।

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