वृति की परिभाषा और प्रकार ( भेद ) | Vruti Ki Paribhasha Or Prakar ( Best )

वृति की परिभाषा और प्रकार ( भेद ) | Vruti ki Paribhasha or prakar

[हमारी वृत्ति किस प्रकार की होनी चाहिए, वृत्ति का मतलब, पंच वृत्ति क्या है, वृत्ति का अर्थ in English, वृत्ति क्रिया के किस अर्थ का बोध कराती है, चित्त वृत्ति के प्रकार, भारती वृत्ति का संबंध किस रस से है, वृत्ति को चौदह प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है]

वृति की परिभाषा और प्रकार ( भेद ) | Vruti ki Paribhasha or prakar

->आदत, स्वभाव और व्यवहार तीनों जब मिलते हैं तो वृत्ति कहलाते हैं।

->वृत्ति को ‘क्रियार्थ’ भी कहते हैक्रियार्थ का अर्थ है – क्रिया का अर्थ या प्रयोजन  इसका अर्थ यह है किक्रिया रुप’ कहने वाले अथवा करने वाले के किस प्रयोजन या वृत्ति की और संकेत करता है 

->वृत्ति वक्ता की वह मनःस्थिति है, जो वाक्य में क्रिया रूपों द्वारा व्यक्त होती है।

 -> “जो कार्य या व्यापार लौकिक जगत में घटित न हुई हो, वरन जो वक्ता के मस्तिष्क में इच्छा, संभावना, अनुमान आदि के रूप में निहित हो, उसका संबंध वृत्ति से होता है।”

कुछ वैयाकरणों के ‘वृत्ति’ संबंधी धारणाएँ द्रष्टव्य हैं-

“क्रिया के उन रूपों को वृत्ति कहते हैं कि जो कार्य घटित होने की रीति को बताते हैं (अर्थात कोई कार्य मात्र घटित होता है यह उसे करने का आदेश दिया जाता है अथवा यह किसी विशेष अवस्था पर निर्भर होता है)”

“पदार्थ या अंतर्निहित अर्थ को स्पष्ट करने की विश्लेषण पद्धति को वृत्ति कहते हैं। इसके द्वारा वाक्य में छिपी भावना को ढूँढ निकालने का प्रयत्न किया जाता है, साथ ही क्रिया संपन्नता में कई अर्थ जुड़े होते हैं, उनमें ‘वृत्ति’ भी एक है।” 

उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट हो जाता है कि ‘वृत्ति’ का संबंध लौकिक जगत से न होकर वक्ता के मस्तिष्क में स्थित संभाव्य, इच्छा, आज्ञा आदि से ज्ञात होता है।

वृति की परिभाषा और प्रकार

वृति के प्रकार ( भेद )

वृत्ति का वर्गीकरण-  वृत्ति का वर्गीकरण विभिन्न वैयाकरणों ने भिन्न भिन्न रूपों में किया है। यहाँ क्रिया पदबंध के अंतर्गत मिलने वाले सभी वृत्तिवाची तत्वों के आधार पर वर्गीकरण किया गया है- 

1. आज्ञार्थक

2. संभावनार्थक

3.निश्चयार्थक 

4. सामर्थ्यसूचक

5. संभावनार्थ

6.संकेतार्थ 

7.सन्देहार्थ

8. बाध्यता सूचक

9. अनुज्ञात्मक

10. भविष्यत।

1. आज्ञार्थक

आज्ञार्थक वाक्य में वृत्ति-प्रत्यय ø,-ओ, -इए, -ना आदि लगते हैं। आज्ञार्थक के अंतर्गत आज्ञा, प्रार्थना, उपदेश आदि भाव निहित होते हैं। जैसे की –

  1. (तू) यहाँ से जा। (0ø)
  2. (तुम) पानी लाओ। (-ओ)
  3. (आप) इधर आइए। (-इए)
  4. (जरा) वह पुस्तक देना। (-ना)  

  उपर्युक्त उदाहरणों में (तू), (तुम), (आप) आदि अप्रयुक्त होते हुए भी क्रिया के द्वारा ही स्वतः स्पष्ट हो जाता है।

2. संभावनार्थक

संभावनार्थक वाक्य में वृत्ति-प्रत्यय‘-ए’ ही मुख्य रूप से प्रयुक्त होता है। इसके द्वारा संभावना, इच्छा, अनुज्ञा आदि भाव का बोध होता है।जैसे की –

  1. शायद उसे जाना पड़े। (-ए) (संभावना)
  2. अच्छा होगा यदि वह साथ चले। (-ए) (इच्छा)
  3. हम अंदर आ जाएं। (-ए) (अनुज्ञा)

3.निश्चयार्थक

 क्रिया के जिस रुप से कार्य के होने या न होने का अर्थ निश्चित रुप से प्रकट हो, वहाँ ‘निश्चयार्थक’ होता है ।

जैसे – १. मैं लिखता हूँ ।

२. सहसा बादल बरसने लगे ३.

विवेक विद्यालय जाता है ।

विशेष – जहाँ क्रियार्थ के अन्य चार भेद स्पष्ट नही होते, वहाँ निश्चयार्थक प्रकार माना जाता है । 

4. संभावनार्थ

क्रिया के जिस रुप से किसी कार्य के होने की संभावना प्रकट हो, वहाँ ‘संभावनार्थक’ होता है ।

जैसे – १. क्या पता, मेरा मकान तुम्हें पसँद भी आए ।

          २.कदाचित तुम वहाँ नही पहुँच सकोगे । 

5. संकेतार्थ

जिस क्रिया रुप में एक काम का होना दूसरे कार्य पर निर्भर हो, उसे ‘संकेतार्थ’ कहते है 

यहाँ कार्य –कारण एक –दूसरे की ओर संकेत करते है ।

जैसे – वह आता तो उसे भी वरदान मिल जाता । 

6. सन्देहार्थ

क्रिया के जिस रुप से कार्य के होने में संदेह हो ।

जैसे –

१.वह मुझे याद करता होगा ।

२.वह सो रहा होगा ।   

३.मैं पढ़ा होता, तो अवश्य पास हो गया होता । 

7. सामर्थ्य सूचक

सामर्थ्य सूचक क्रियाओं के अंतर्गत सक-,बन-, पा-, ले- आदि सहायक क्रियाओं का ही मुख्य रूप से प्रयोग होता है। ‘सकना’ किसी भी सकारात्मक, नकारात्मक अथवा प्रश्नवाचक वाक्यों में प्रयुक्त हो सकता है परंतु ‘पाना’ एवं ‘बनना’ पूर्ण सकारात्मक वाक्यों के साथ नहीं प्रयुक्त हो सकता; यथा-

  1. वह चल सकता है। (सक-)
  2. वह बोल नहीं सकता है। (सक-)
  3. क्या वह खा नहीं सकता ? (सक-)
  4. मीना बोल लेती है। (ले-) 
  5. मुझसे चलते नहीं बनता। (बन-)
  6. श्याम बोल नहीं पाता। (पा-)

8. बाध्यता सूचक

बाध्यता सूचक वाक्य के कर्ता पर बाह्य परिस्थितियों का दबाव पड़ता है। उसे न चाहते हुए भी ऐसा करना पड़ता है। इसमें विवशता परिलक्षित होती है। परंतु केवल- -ना पड़,-ना हो, -ते बन आदि वृत्ति प्रत्ययों के लिए ही विवशता होती है। जबकि -ना चाहिए आदि में कर्तव्य या परामर्श के भाव में ही कर्ता कोई कार्य करेगा। उसके समक्ष कोई विवशता अथवा  बाह्य दबाव नहीं होता है, बल्कि उसकी इच्छा पर निर्भर करता है कि वह करे या न करे। यथा-

  1. सुरेश को रात में ही दिल्ली जाना पड़ा। (विवशता)
  2. सुरेश को रात में दिल्ली जाना होगा।  (अप्रत्यक्ष विवशता)
  3. मुझे भी दिल्ली जाना है। (अप्रत्यक्ष विवशता)
  4. सुरेश से इस समय दिल्ली जाते नहीं बनता। (विवशता)
  5. सुरेश को दिल्ली चले जाना चाहिए। (परामर्श)
  6. तुम्हें माँ-बाप की सेवा करनी चाहिए। (कर्त्तव्य)

9. अनुज्ञात्मक

किसी कार्य व्यापार को संपादित करने की अनुमति,अनुनय आदि का भाव वक्ता के मस्तिष्क में निहित होता है। ऐसे वाक्य अनुज्ञात्मक होते हैं। यथा-

  1. कुलपति महोदय, अनुमति देना चाहें। (अनुनय)
  2. क्या मैं अन्दर आ सकता हूँ? (प्रार्थना)
  3. उसे जाने दें। (अनुनय)
  4. उसे क्षमा कर दें। (अनुनय)
  5. क्या आप मेरा कार्य कर देंगे? (अनुनय)

10. भविष्यत

इसमें अनिश्चित की स्थिति बनी रहती है। इसमें प्रयुक्त वृत्ति प्रत्यय -एगा,-एगे, -एगी आदि भविष्यत वाची प्रत्यय लगते हैं। इसमें वृत्ति के साथ-साथ काल-तत्व का भी बोध होता है। यथा-

  1. रमेश घर आ जाएगा।
  2. मैं सुबह आ जाऊँगा।
  3. शीला काम करने लगी।

[sc_fs_multi_faq headline-0=”h2″ question-0=”वृत्ति के कितने प्रकार होते हैं?” answer-0=” आज्ञार्थक 2. संभावनार्थक 3.निश्चयार्थक  4. सामर्थ्यसूचक 5. संभावनार्थ 6.संकेतार्थ  7.सन्देहार्थ 8. बाध्यता सूचक 9. अनुज्ञात्मक 10. भविष्यत।” image-0=”” headline-1=”h2″ question-1=”वृत्ति से आप क्या समझते हैं?” answer-1=”वृत्ति से आप क्या समझते हैं?” image-1=”” headline-2=”h2″ question-2=”” answer-2=”” image-2=”” headline-3=”h2″ question-3=”” answer-3=”” image-3=”” count=”4″ html=”true” css_class=””]

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