( Best ) विस्मयादिबोधक की परिभाषा और भेद ( प्रकार )
विस्मयादिबोधक
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विस्मयादिबोधक की परिभाषा
- शोकबोधक
- तिरस्कारबोधक
- स्वीकृतिबोधक
- विस्मयादिबोधक
- संबोधनबोधक
- हर्षबोधक
- भयबोधक
- आशीर्वादबोधक
- अनुमोदनबोधक
- विदासबोधक
- विवशताबोधक
1.शोकबोधक
यह मन के शोक (दु:ख) को प्रकट करता है। जैसे:
- हे राम! ऐसा हमेशा मेरे साथ ही क्यों होता है।
- हाय! शर्मा जी चल बसे।
- ओह! मैं कल वहाँ नहीं आ सकता।
- बाप रे बाप! उसने ऐसा क्यों कर डाला?
2. घृणा या तिरस्कार बोधक
यह घृणा और तिरस्कार की भावना को बताता हे | जेसे की :-
- अगर तुम यह मैच नहीं जीते तो धिक्कार! है तुम पे।
- चुप! लगता है कोई खड़ा है।
- छि:! कितनी गंदगी है यहाँ।
3. स्वीकृतिबोधक
यह किसी बात को स्वीकार करने का भाव प्रकट करता है। जैसे:
- अच्छा! फिर ठीक है।
- ठीक है! तुम्हें जो सही लगता है कर लो।
- जी हाँ! मैं समय पर आ जाऊँगा।
4.विस्मयबोधक
- अरे! तुम किस समय आये ?
- क्या! सच में ऐसा हो गया ?
- अरे ! यह कौन है?
5.संबोधनबोधक
संबोधन के लिए इन विस्मयादिबोधक का प्रयोग किया जाता है।
- अजी! सुनते हो।
- अरे! आपको किससे मिलना है?
- हैलो! तुमको किससे बात करनी है?
6.हर्षबोधक
- अहा! हम जीत गए।
- शाबाश ! तुमने ईमानदारी का परिचय दिया।
- वाह ! ये तो किसी अजूबे से कम नहीं।
7. भयबोधक
यह मन के भय को प्रकट करते हैं। जैसे:
- उई माँ! बहुत काटें हैं यहाँ पर।
- बाप रे बाप ! इतना बड़ा अजगर।
- हाय! अब मैं क्या करूँ।
8.आशीर्वादबोधक
यह आशीर्वाद का भाव प्रकट करता है। जैसे:
जब किनहीं वाक्यों में जीते रहो!, खुश रहो!, सदा सुखी रहो!, दीर्घायु हो आदि शब्दों का प्रयोग किया जाता है तो ये आशिर्वादबोधक कहलाते हैं। ये तब प्रयोग करते हिं जब बड़े लोग छोटे लोगों को आशीर्वाद देते हैं।
- सदा सुखी रहो! बेटी।
- जीते रहो ! तुम्हें सदा सफलता मिले।
9.अनुमोदनबोधक
जब वाक्य में हाँ !, बहुत अच्छा !, अवश्य ! आदि शब्दों का प्रयोग किया जाता है, तो वे अनुमोदनबोधक कहलाते हैं। इन शब्दों से अनुमोद की भावना का बोध होता है।
- बहुत अच्छा ! अब आगे ही बढ़ते रहना।
- हाँ हाँ ! यहाँ सब ठीक है।
- अवश्य! तुम यह काम कर सकते हो।
10.विदासबोधक
जब अच्छा !, अच्छा जी !, टा -टा ! आदि शब्दों का इस्तेमाल किया जाता है तो वे शब्द विदासबोधक कहलाते हैं।
- टा-टा ! अब हम चलते हैं।
- अच्छा जी! कल फिर मिलते हैं।
- अच्छा ! कल फिर मिलेंगे।
11.विवशताबोधक
यह वक्ता की विवशता को प्रकट करते हैं। जैसे:
जब वाक्य में काश ! , कदाचित् ! , हे भगवान ! जैसे शब्दों का प्रयोग किया जाता है, तो वे शब्द विवशताबोधक शब्द कहलाते हैं। इन शब्दों से विवशता की भावना व्यक्त की जाती है।
- काश! मैं भी तुम्हारे साथ चल सकता।
- हे भगवान! अब उसको कौन संभालेगा?
- कदाचित! ऐसा न हो तो अच्छा है।
12. क्रोधबोधक
यह मन के क्रोध को प्रकट करता है। जैसे:
-
- अरे! मेरी बात मानता है या नहीं?
- चुप रहो! वरना मार खाओगे।