( Best ) समुच्चयबोधक की परिभाषा और उसके प्रकार
समुच्चयबोधक
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समुच्चयबोधक की परिभाषा
ऐसे शब्द जो दो या दो से अधिक शब्द, वाक्य या वाक्यांशों को जोड़ने का काम करते हैं, वे शब्द समुच्चयबोधक कहलाते हैं इन समुच्चयबोधक शब्दों को योजक भी कहा जाता है।
जहाँ पर किन्तु, परन्तु, इसीलिए, बल्कि, तब, ताकि, वरना, क्योंकि, या, अथवा, एवं, तथा, अन्यथा आदि शब्द जुड़ते हैं वहाँ पर समुच्चयबोधक होता है। इन समुच्चयबोधक शब्दों को योजक शब्द भी कहा जाता है।
कुछ शब्द जब भेद प्रकट करते हैं तब भी शब्दों और वाक्यांशों को जोड़ते हैं इसे अव्यय का एक भाग माना जाता है इसी वजह से इसे समुच्चयबोधक अव्यय भी कहा जाता है।
जेसे की –
आयुष ने कड़ी मेहनत की और सफल हुआ।
उसने बहुत समझाया लेकिन किसी ने उसकी बात नहीं मानी।
अगर तुम बुलाते तो मैं जरुर आता।
श्रुति और गुंजन पढ़ रहे हैं।
समुच्चय बोधक के भेद:-
समुच्चय-बोधक अव्ययों के मुख्य दो भेद हैं–
1- समानाधिकरण समुच्चयबोधक
2- व्यधिकरण समुच्चयबोधक।
सर्वनाम की परिभाषा और भेद ( प्रकार )
1.समानाधिकरण समुच्चयबोधक:-
जिन अव्ययों या पदों के द्वारा मुख्य वाक्य जोड़े जाते हैं। उन्हें समानाधिकरण समुच्चय बोधक कहते हैं। जहॉं पर और, तो आते हैं वहॉं पर समानाधिकरण समुच्चयबोधक होता है।
जैसे-
- राखी खड़ी थी और मीना बैठी थी।
- रमेश गायेगा तो रीना ड्रम बजायेगी।
समानाधिकरण समुच्चयबोधक के उपभेद- इनके छ: उपभेद है।
- संयोजक समानाधिकरण समुच्चयबोधक
- विभाजक समानाधिकरण समुच्चयबोधक
- विरोधदर्शक समानाधिकरण समुच्चयबोधक
- परिणामदर्शक समानाधिकरण समुच्चयबोधक
- विकल्पसूचक समानाधिकरण समुच्चयबोधक
- वियोजक समानाधिकरण समुच्चयबोधक
1. संयोजक समानाधिकरण समुच्चयबोधक:-
जिन शब्दों से शब्दों, वाक्यों, और वाक्यांशों को आपस में मिलाते है व दो या उससे अधिक वाक्यों को आपस में जोड़ा जाता है। वह संयोजक समानाधिकरण समुच्चयबोधक कहलाते हैं। संयोजक- और, व, तथा, एवं, भी। इनके द्वारा दो वा अधिक मुख्य वाक्यों का संग्रह होता है।
जैसे-
- 1. हरी और नीरज बाजार जा रहे हैं।
- 2. मनीष और महेन्द्र दोनों मित्र हैं।
- 3. आलू तथा प्याज सब्जी हैं।
- 4. बिल्ली के पंजे होते हैं और उनमें नख होते हैं।
- 5. राम, लक्ष्मण और सीता वन में गये।
2. विभाजक समानाधिकरण समुच्चयबोधक:-
इन अव्ययों से दो या अधिक वाक्यों वा शब्दों में से किसी एक का ग्रहण अथवा दोनों का त्याग होता है। जिन शब्दों, वाक्यों, वाक्यांशों और उपवाक्यों में परस्पर विभाजन प्रकट करते हैं वह विभाजक समानाधिकरण समुच्चयबोधक कहते हैं। या, वा, अथवा, किंवा, कि, या-या, चाहे-चाहे, क्या-क्या, न-न, न कि, नहीं तो, अन्यथा, आते हैं। वहॉं पर विभाजक समानाधिकरण समुच्चयबोधक होता हैं|
जैसे–
- लखन आया,परंन्तु नीरज नहीं।
- तु चलोगे तो मैं चलूँगा।
3. विरोधदर्शक समानाधिकरण समुच्चयबोधक:-
जिन अव्यय दो वाक्यों में से पहले का निषेध व परिमिति सूचित करते हैं। या शब्दों से दो वाक्यों में से पहले की सीमा को सूचित किया जाता हैं वह विरोधदर्शक समानाधिकरण समुच्चबोधक कहलाते हैं। अर्थात जो शब्द परस्पर दो विरोध करने वाले उपवाक्यों व कथनों को आपस में जोड़ते हैं उन्हें भी विरोधदर्शक समानाधिकरण समुच्चबोधक कहते हैं। जहॉं पर, परंतु, पर, किंतु, लेकिन, मगर, बरन, बल्कि, आते हैं। विरोधदर्शक समानाधिकरण समुच्चयबोधक होता है।
जैसे-
- लक्ष्मन ने उसे रोका था लेकिन वह नहीं रूका।
- मोहन स्कूल गया था पर पहुँचा नही था।
- झूठ सच की तो भगवान जाने,पर मेरे मन में एक बात आई हैं।
- पारस देश वाले भी आर्य थे,बरन इसी कारण उस देश को अब भी ईरान कहते हैं।
- कामनाओं के प्रबल होने से आदमी दुराचार नहीं करते,किन्तु अंत:करण के निर्बल हो जाने से वे वैसा करते है।
4. परिणामदर्शक समानाधिकरण समुच्चयबोधक:-
इन अव्ययों से यह जाना जाता हैं कि इनके आगे के वाक्य का अर्थ का फल है। जो शब्द परस्पर दो उपवाक्यों को जोड़कर परिणाम का पता चलता है उन्हें परिणामदर्शक समानाधिकरण समुच्चयबोधक कहते हैं। अर्थात अव्यय शब्दों से परिणाम का पता चले उसे परिणामसूचक समानाधिकरण समुच्चबोधक कहते हैं।
यहॉं पर इसीलिए, सो, अत, अतएव, फलत:, अत:, परिणाम स्वरूप, इसलिए, फलस्वरूप, अन्यथा, शब्द आते है वहॉं पर परिणामसूचक समानाधिकरण समुच्चयबोधक कहलाते है।
जैसे–
- अब भोर होने लगा था,इसलिए दोनों जन अपनी अपनी ठौरों से उठे।
- तुम मेरी सहायता करोगे, इसीलिए मैं आपके पास आया हूँ।3. मैं अंग्रेजी में कमजोर हूँ, अत: आप मेरी सहायता करेंगे।
- अब शाम होने लगी है इसलिए दोनों अपनी-अपनी जगह से उठे।
5. विकल्पसूचक समानाधिकरण समुच्चयबोधक:-
जिन अव्ययों में विकल्प का पता चलता है वह विकल्पसूचक समानाधिकरण समुच्चयबोधक कहलाते है। जहॉं पर– या, अथवा, अन्यथा, कि शब्द आते है। वहॉं पर विकल्पसूचक समानाधिकरण समुच्चयबोधक होता है|
जैसे–
- तुम सिलाई कर सकती हो या कढ़ई।
- तुम काम लगन से करो अन्यथा काम पूरा नही होगा।
- मैं जाउँगा अथवा रमेश जायेगा।
6. वियोजक समानाधिकरण समुच्चयबोधक:-
जिन अव्यय शब्दों से अपने द्वारा मिलने वाले और एक को त्यागने का पता लगता है। वह वियोजक समानाधिकरण समुच्चयबोधक कहलाते हैं। जहॉं पर अथवा, या, न, आते हैं वहॉं पर वियोजक समानाधिकरण समुच्चयबोधक होता है।
जैसे–
- रीना अथवा मीना ने गेंद मारी है।
- न तुमने,न तुम्हारे पिता ने मेरी सहायता की।
2.व्यधिकरण समुच्चयबोधक:-
जिन अव्ययों के योग से एक मुख्य वाक्य में एक व अधिक आश्रित वाक्य जोड़े जाते हैं उन्हें
व्यधिकरण समुच्चबोधक कहते हैं
दूसरे शब्दों में- जिन शब्दों से किसी वाक्य के प्रधान से आश्रित उपवाक्यों को परस्पर जोड़ते हैं उन्हें व्यधिकरण समुच्चयबोधक कहते हैं।
व्यधिकरण समुच्चयबोधक के भेद :-
इनके चार भेद होते हैं।
- कारणवाचक व्यधिकरण समुच्चयबोधक
- उद्देशवाचक व्यधिकरण समुच्चयबोधक
- संकेतवाचक व्यधिकरण समुच्चयबोधक
- स्वरूपवाचक व्यधिकरण समुच्चयबोधक
1. कारणवाचक व्यधिकरण समुच्चयबोधक
जिन अव्ययों से आरंम्भ होने वाले वाक्य पूर्ववाक्य का समर्थन करते हैं। अर्थात पूर्व वाक्य के अर्थ का कारण उत्तर वाक्य के अर्थ से सूचित होता है। या जिन शब्दों से परस्पर जुड़े दो उपवाक्यों के कार्य का कारण स्पष्ट होता हैं उसे कारणवाचक व्यधिकरण समुच्चयबोधक कहते हैं। जहॉं पर- क्योंकि, जोकि, इसलिए कि, चूँकि, ताकि, आते हैं वहॉं पर कारणवाचक व्यधिकरण समुच्चयबोधक होता हैं।
जैसे–
- इस नाटिका का अनुवाद करना मेरा काम नही था,क्योंकि
मैं संस्कृत अच्छी नहीं जानता।
- तुम पर कोई भरोसा नहीं करता क्योंकि तुम झूठ बोलते हो।
- वह मुझे पसंद है इस लिए कि वह सुंदर है।
एक वाक्य का उदाहरण:- ‘’इस नाटिका का अनुवाद करना मेरा काम नहीं था, क्योंकि मैं संस्कृत अच्छी नहीं जानता।‘’ इस उदाहरण में उत्तर वाक्य पूर्व वाक्य का कारण सूचित करता हैं। यदि इस वाक्य को उलअकर ऐसा कहे कि ‘’मैं संस्कृत अच्छी नही जानता, इसलिए इस नाटिका का उनुवाद करना मेंरा काम नहीं था’’ जो पूर्व वाक्य से कारण और उत्तर वाक्य से उसका परिणाम सूचित होता है, और ‘’इसलिए’’ शब्द परिणाम-बोधक हैं।
2. उद्देशवाचक व्यधिकरण समुच्चयबोधक:-
जिन अव्ययों के पश्र्चात् आने वाला वाक्य दूसरे वाक्य का उद्देश्य व हेतु सूचित करता है। उद्देश्यवाचक वाक्य बहुधा दूसरे (मुख्य) वाक्य के पश्र्चात् आता है, पर कभी-कभी वह उसके पूर्व भी आता है। उसे उद्देश्यवाचक व्यधिकरण समुच्चयबोधक कहते हैं।
जिन अव्यय शब्दों से उद्देश्य का पता चले उसे उद्देश्यवाचक व्यधिकरण समुच्चयबोधक कहते हैं। जहॉं पर ताकि, कि, जो इसलिए कि, जिससे आते हैं वहॉं पर उद्देश्यवाचक व्यधिकरण समुच्चयबोधक होता हैं।
जैसे–
- हम तुम्हें वृंदावन भेजना चाहते हैंकितुम उनका समाधान
कर आओ।
- किया क्या जायजोदेहातियों की प्राणरक्षा हो।
- लोग अकसर अपना हक पक्का करने के लिये दस्तावेजो
की रजिस्ट्री कर लेते है ताकि उनके दावे में किसी प्रकार का
शक न रहें।
- मछुआ मछली मारने के लिये हर घड़ी मेहनत करता हैंइसलिएकि उसको मछली का अच्छा मोल मिल सके।
3. संकेतवाचक व्यधिकरण समुच्चयबोधक:-
जिस वाक्य में ‘’जो’’, ‘’यदि’’, ‘’यद्यपि’’या ‘’चाहे’’ का प्रयोग होता है उसे पूर्व वाक्य और दूसरे को उत्तर वाक्य कहते हैं। इन अव्ययों को संकेतवाचक व्याधिकरण समुच्चयबोधक कहने का कारण यह है कि पूर्व वाक्य में जिस घटना का वर्णन रहता है उससे उत्तर वाक्य की घटना का संकेत पाया जाता है।
दूसरे शब्दों में- जिन शब्दों से पूर्व वाक्य की घटना से उत्तर वाक्य की घटना का संकेत मिले उसे संकेतवाचक व्यधिकरण समुच्चयबोधक कहते है। या जिन शब्दों से दो योजक दो उपवाक्यों को जोड़ते हैं उन्हें संकेतसूचक व्यधिकरण समुच्चयबोधक कहते हैं। जहॉं पर यदि, तो, यद्यपि-तथापि, (तोभी), चाहे-परंतु, कि, परन्तु आते हैं। वहॉं पर संकेतवाचक व्यधिकरण समुच्चयबोधक होता है।
जैसे-
- जो मैं राम तो कुल सहित कहहि दसनन जाय।
- जो हरिशचंद्र को तेजोभ्रष्ट न किया तो मेरा नाम विश्वामित्र नहीं।
- जो वह स्नेह ही न रहा तो अब सुधि दिलाये क्या होता है।4. कदाचित कोई कुछ पूछे तो मेरा नाम बता देना।
- शैव्या रोहिताश्व का मृत कंबल फाड़ा चाहती है कि रंगभूमि की पृथ्वी हिलती है’’।
उदाहरण- ‘’यदि’’ से संबंध रखने वाली एक प्रकार की वाक्यरचना हिंदी में अँग्रेजी के सहवास से प्रचलित हूई है जिसमें पूर्व वाक्य की शर्त का उल्लेख कर तुरंत ही उसका मंडन कर देते हैं, परंतु उत्तर वाक्य ज्यों का त्यों रहता हैं, जैसे– ‘’यदि यह बात सत्य हो (जो निस्संदेह सत्य ही है) तो हिंदुओं को संसार में सब से बड़ी जाति मानना ही पड़ेगा’’। ‘’यदि’’ का पर्यायवाची उर्दू शब्द ‘’अगर’’ भी हिंदी में प्रचलित हैं।
4. स्वरूपवाचक व्यधिकरण समुच्चयबोधक:-
इन अव्ययों के द्वारा जुड़े हुए शब्दों व वाक्यों में से पहले शब्द व वाक्य का स्वरूप (स्पष्टीकरण) पिछले शब्द व वाक्य से जाना जाता है, इसलिए इन अव्ययों को स्वरूपवाचक व्यधिकरण समुच्चयबोधक कहते हैं। जहॉं पर यानी, कि, अथार्त, मानो आते हैं वहॉं स्वरूपवाचक व्यधिकरण समुच्चयबोधक होता हैं।
जैसे–
- श्रीशुकदेवमुनि बोले कि महाराज,अब आगे कथा सुनिए।
- मेरे मन में आती है कि इससे कुछ पूछूँ।
- बात यह है कि लोगों की रूचि एक सी नही होती।
- परमेश्र्वर एक है,यह धर्म की बात है।
रबर काहे का बनता है यह बात बहुतेरों को मालूम भी नहीं है।
उदाहरण- इसके और अर्थ तथा प्रयोग पहले कहे गये हैं। जब यह अव्यय स्वरूपवाचक व्यधिकरण समुच्चयबोधक होता है तब इससे किसी बात का केवल आरंभ व प्रस्तावना सूचित होती है। जैसे- श्रीशुकदेवमुनि बोले कि महाराज, अब आगे कथा सुनिए।