( Best ) शब्द रचना (संधि एवं संधि-विच्छेद, उपसर्ग , प्रत्यय ,समास, तत्सम, तद्भव, पर्यायवाची)

शब्द रचना

Table of Contents

शब्द रचना

1.संधि

2.संधि विच्छेद(page-2)

3.उपसर्ग(page-3)

4.प्रत्यय(page-4)

5.समास(page-5)

6.तत्सम(page-6)

7.तद्भव(page-7)

8.पर्यायवाची(page-8)

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शब्द रचना:

1. संधि

संधि – दो वर्णो के मेल से जो विकार उत्पन्न होता है उसे संधि कहते है | यह विकार कभी एक वर्ण से और कभी दो वर्ण से होता है | कभी दोनों के स्थान पर तीसरा वर्ण आ जाता है | जैसे देव + इंद्र = देवेंद्र , इति+आदि = इत्यादि |

संधि के भेद : संधि के तीन भेद है —

I. स्वर संधि

1. दीर्घ
2. गुण
3. वृद्धि
4. यण
5. अयादि

II. व्यंजन संधि
III. विसर्ग संधि

 

I. स्वर संधि

– दो स्वरों के मेल से होने वाले विकार को स्वर संधि कहते है

1. दीर्घ सन्धि

– दो सवर्ण स्वर मिलकर दीर्घ हो जाते हैं ।

(i)अ+अ = आ  — अन्न = अभाव = अन्नाभाव

अ+आ = आ      — भोजन + आलय = भोजनालय

आ+अ = आ      —  यथा + अर्थ = यथार्थ

आ+आ = आ     —   विद्या + आलय = विद्यालय

(ii)  इ+इ = ई             रवि+इंद्र = रवींद्र

इ + ई = ई                 मुनि + ईश्वर + मुनीश्वर

ई + इ = ई                 मही + इंद्र = महिंद्र

ई+ई=ई                     नारी + ईश्वर = नारीश्वर

(iii) उ+उ = ऊ            सु +उक्ति = सूक्ति

उ + ऊ = ऊ             अम्बु+ऊर्मि = अम्बूर्मी

ऊ+उ =ऊ                वधू+उत्सव = वधूत्सव

ऊ+ऊ=ऊ                 भू+ऊर्जा = भुर्जा

(iv)  ऋ + ऋ = ऋ           पितृ + ऋण = पितृण

2. गुण संधि —

(i) अ+इ= ए               देव + इंद्र = देवेंद्र

अ+ई=ए                    देव + ईश = देवेश

आ +इ=ए                  महा + इंद्र = महेंद्र

आ +ई=ए                  महा + ईश्वर = महेश्वर

(ii) अ + उ = ओ          सूर्य + उदय = सूर्योदय

अ + ऊ = ओ             समुन्द्र + ऊर्मि = समुद्रोर्मि

आ + उ = ओ              यथा + उचित = यथोचित

आ + ऊ = ओ             महा + ऊर्मि = महोर्मि

(iii) अ +ऋ = अर          देव+ऋषि = देवर्षि

आ + ऋ = अर                 महा + ऋषि = महर्षि

3. वृद्धि संधि —

(i) अ + ए = ऐ       एक +एक=एकैक

अ + ऐ = ऐ            नव + ऐश्वर्य = नवैश्वर्य

आ + ए = ऐ           सदा + एव = सदैव

आ + ऐ = ऐ           सदा+ऐक्य = सदैक्य

(ii) अ+ओ = औ           परम+ओजस्वी = परमोजस्वी

अ + औ = औ                वन+औषध = वनौषध

आ+ओ= औ                   महा + ओजस्वी = महौजसवी

आ + औ = औ                महा+औषध = महौषध

4. यण संधि —

(i) इ , ई + कोई भिन्न स्वर = इ,ई का य        अति + अंत = अत्यंत , प्रति + एक = प्रत्येक

(ii) उ, ऊ + कोई भिन्न स्वर = उ,ऊ का व्      सु + आगतम= स्वागतम , सरयू+अम्बु = सरय्वम्बू

(iii) ऋ + कोई भिन्न स्वर = ऋ का र               पितृ + आदेश = पित्रादेश

5. अयादि संधि —

(i) ए+ कोई भिन्न स्वर = ए का अय                    ने + अन = नयन

(ii) ऐ + कोई भिन्न स्वर = ऐ का आय                 नै + अक = नायक

(iii) ओ+ कोई भिन्न स्वर = ओ का अव              पो + इत्र = पवित्र

(iv) औ + कोई भिन्न स्वर = औ का आव             नौ+इक = नाविक , पौ+ अन = पावन

II. व्यंजन संधि —

1. किसी भी वर्ग का पहला वर्ण (क,च, ट, त, प ) + कोई स्वर या व्यंजन = पहले वर्ण के स्थान पर तीसरा वर्ण (ग, ज , ड, द, ब)

दिक्+अम्बर = दिगंबर

सत+आचार = सदाचार

अच् +अंत = अजन्त

उत+अय = उदय

षट+आनन् = षडानन

अप+धी= अब्धि

2. किसी वर्ग का पहला वर्ण + अनुनासिक वर्ण (पंचम वर्ण – ड,ञ,ण, न , म)= पहले के स्थान पर उसी वर्ग का पांचवा वर्ण

वाक्+मय= वाड्मय

तत+मय = तन्मय

षट +मुख =षण्मुख

मृत +मय = मृण्मय

उत +निति = उन्नति

अप+मय =अम्मय

3. (i) त या द +च = च्च       उत +चारण = उच्चारण

त या द +ज = ज्ज               सत+जन= सज्जन

त या द +ट= ट्ट                 तत +टीका = तट्टीका

त या द + ड = ड्ड                उत+डयन = उड्डयन

त या द + ल = ल्ल               उत+लास = उल्लास , शरद +लास = शरल्लास

(ii) त या द + श = च्छ             उत +श्वास = उच्छ्वास , उत+शिष्ट = उच्छिष्ट

(iii) त या द + ह = द्ध              उत+हार = उद्धार, पत +हति= पद्धति

4. स्वर (अ,आ,इ,ई,उ,ऊ)+ छ = दोनों के बीच में “च” का आगमन

प्रति+छाया = प्रतिच्छाया , अनु+छेद=अनुच्छेद

5. म+किसी वर्ग का कोई व्यंजन = म के स्थान पर उसी वर्ग का अंतिम वर्ण या अनुस्वार

सम+मति = सम्मति

सम+तप=संताप (संतोष)

सम+चय= संचय

सम+वैट= संवत

6. म+अन्तस्थ (य,र,ल,व् ) या ऊष्म (श,ष,स, ह ) = म के स्थान पर अनुस्वार

सम+याम = संयम

सम + शय= संशय

सम+रक्षक = संरक्षक

सम+सर्ग = संसर्ग

7. ऋ,र,ष+ कोई स्वर या व्यंजन +न = बाद के न के सतह पर ण

ऋ+न= ऋण

वीर+अंगना=वीरांगणा

भूष +न = भूषण

प्र+नाम = प्रणाम

8. अ + आ से भिन्न स्वर +स = स के स्थान पर ष

वि+सम=विषम

अभी+सेक = अभिषेक

सु+सुप्ति = सुषुप्ति

नई+सेध= निषेध

9. निर+र = नी+र

निर+रस=नीरस

निर+रोग=निरोग

10. क+ह=ग्ध       वाक्+हरि=वाग्धरि

III. विसर्ग संधि –

-विसर्ग के साथ स्वर या व्यंजन के मेल से जो विकार होता है उसे विसर्ग संधि कहते है

1. विसर्ग+च, छ= विसर्ग का श                   नि:+चय = निश्चय

विसर्ग+ट,ठ = विसर्ग का ष                        धनु:+टंकार= धनुष्ठ्कार

विसर्ग+त , थ =  विसर्ग का स                     नम:+ते = नमस्ते

2. इ/उ + विसर्ग + क,ख,प,फ = विसर्ग का ष

नि: + कपट = निष्कपट
नि: + फल = निष्फल
दु: + कर = दुष्कर
चतु: + पाद = चतुष्पाद

3.  इ/उ +विसर्ग+क, ख, प, फ = विसर्ग अपरिवर्तित

प्रात: + काल = प्रात:काल

अन्त: + पुर =  अन्त:पुर

पय:+दान= पय:दान

अध्:+पतन = अध्:पतन

अपवाद–

पुर:+कार=पुरस्कार

श्रेय:+कर = श्रेयस्कर

तिर:+कर= तिरस्कार

4. अ अथवा आ  से भिन्न स्वर + विसर्ग + ष, श, स = अपरिवर्तनशील या विसर्ग के बाद वाला वर्ण

नि:+शुल्क = नि:शुल्क /निश्शुल्क

दु:+साहस = दु:साहस/दुस्साहस

दु:+स्थल =दु:स्थल

नि:+ संदेह =निस्संदेह

5. (i) अ,आ +विसर्ग+कोई स्वर या किसी वर्ग का तीसरा , चौथा या पांचवा वर्ण = विसर्ग के स्थान पर ओ

मन:+भाव= मनोभाव

मन:+ज=मनोज

यश:+धरा = यशोधरा

तप:+भूमि=तपोभूमि

(ii) अ,आ + विसर्ग+ अन्तस्थ (य,र,ल,व् ) = विसर्ग के स्थान पर ओ

वय:+वृद्ध = वयोवृद्ध

सर:+वर = सरोवर

मन:+योग= मनोयोग

मन:+रथ = मनोरथ

6. (i) अ अथवा आ से भिन्न स्वर + विसर्ग+ कोई स्वर या किसी व्यंजन का तीसरा, चौथा या पांचवा वर्ण = विसर्ग के स्थान पर र

नि:+ईह = निरीह

दु:+जन= दुर्जन

दु:+आत्मा= दुरात्मा

स्व:+ग= स्वर्ग

(ii) अ अथवा आ से भिन्न स्वर + विसर्ग+ अन्तस्थ (य,र,ल,व्) = विसर्ग के स्थान पर र

आशी:+वाद= आशीर्वाद

नि:यात=निर्यात

दु:+व्यवहार= दुर्व्यवहार

नि:+वह=निर्वाह

शब्द रचना:

2.संधि विच्छेद

जब किसी शब्द को दो भागों में तोड़ा जाता है और तोड़े हुए दोनों शब्द अपने शब्दों का अलग अलग सही अर्थ देते हैं तब इस प्रक्रिया को संधि विच्छेद कहते हैं ।

यहाँ नीचे सूची में कुछ शब्द दिये गए हैं जिन पर क्लिक करके आप संधि विच्छेद के कई उदहारण देख सकते हैं ।

संधि का नाम संधि विच्छेद संधि का नियम संधि का प्रकार
 आच्छादन आ + छादन (आ + छ = आच्छ) व्यंजन संधि
 अब्धि अप् + धि प वर्ग व्यंजन संधि
अभिषेक अभि + सेक (भ् + स् = ष) व्यंजन संधि
अभीष्ट अभि + इष्ट इ + इ = ई दीर्घ संधि
अभ्यर्थी अभि + अर्थी यण संधि
अभ्युदय अभि + उदय इ + उ = य + उ यण संधि
अभ्युत्थान अभि + उत्थान इ + उ = य + उ यण संधि
अब्ज अप् + ज (प + ज + ब्ज) व्यंजन संधि
अधःफलित अधः + फलित विसर्ग संधि
अधीक्षण अधि + इक्षण इ + इ = ई दीर्घ संधि
अधोगति अधः + गति विसर्ग संधि
अधोघात अधः + घात विसर्ग संधि
अधोजल अधः + जल विसर्ग संधि
अधःपतन अधः + पतन विसर्ग संधि
अध्यादेश अधि + देश यण संधि
अध्याहर अधि + आहार यण संधि
अध्यक्ष अधि + अक्ष यण संधि
अध्ययन अधि + अयन इ + अ = य + अ यण संधि
अग्नाशय अग्नि + आशय इ + आ = य + आ यण संधि
आज्ञानुसार आज्ञा + अनुसार आ + अ = आ दीर्घ संधि
अञ्नाश अच् + नाश (च् + न = ञ्) व्यंजन संधि
अजादि अच् + आदि च वर्ग व्यंजन संधि
अजंत अच् + अंत (च् + अ = ज्) व्यंजन संधि
आमाशय आम + आशय अ + आ = आ दीर्घ संधि
अम्मय अप् + मय (प् + म् = म्) व्यंजन संधि
अन्नाभाव अन्न + आभाव अ + अ = आ दीर्घ संधि
अन्तर्गत अन्तः गत विसर्ग संधि
अंतःकरण अंतः + करण विसर्ग संधि
अनुच्छेद अनु + छेद (उ + छ = उच्छ) व्यंजन संधि
अनुदित अनु + उदित दीर्घ संधि
इत्यादि = इति + आदि इतस्ततः= इतः + ततः
ईश्र्वरेच्छा =ईश्र्वर+इच्छा उन्मत्त =उत् +मत्त
उपर्युक्त =उपरि +उक्त उन्माद =उत् +माद
उपेक्षा =उप+ईक्षा उच्चारण=उत् +चारण
उल्लास =उत् +लास उज्ज्वल =उत् +ज्वल
उद्धार =उत् +हार उदय =उत् +अय
उदभव=उत् +भव उल्लेख =उत् +लेख
उत्रति =उत्+नति उन्मूलित =उत्+मूलित
उल्लंघन=उत्+लंघन उद्याम =उत्+दाम
उच्छ्वास =उत्+श्र्वास उत्रायक =उत्+नायक
उन्मत्त=उत्+मत्त उत्रयन =उत्+नयन
उद्धत =उत्+हत उपदेशान्तर्गत =उपदेश+अन्तर्गत
उन्मीलित =उत्+मीलित उद्योग=उत्+योग
उड्डयन =उत्+डयन उद्घाटन = उत्+घाटन
उच्छित्र =उत्+छित्र उच्छिष्ट =उत्+शिष्ट
उत्कृष्ट=उत्कृष् + त उद्यान= उत् + यान
उत्तमोत्तम= उत्तम + उत्तम उतेजना= उत् + तेजना
उत्तरोत्तर= उत्तर + उत्तर उदयोन्मुख= उदय + उन्मुख
उद्वेग= उत् + वेग उद्देश्य= उत् + देश्य
उद्धरण= उत् + हरण उदाहरण= उत् + आहरण
उद्गम=उत् +गम उद्भाषित= उत् + भाषित
उन्नायक= उत् + नायक उपास्य= उप + आस्य
उपर्युक्त= उपरि + उक्त उपयोगिता= उप + योगिता
उपनिदेशक= उप + देशक उपाधि= उप + आधि
उपासना= उप + आसना ऊहापोह= ऊह + अपोह
उपदेशान्तर्गत= उपदेश + अन्तः + गत एकाकार= एक + आकार
एकाध= एक +आध एकासन= एक + आसन
एकोनविंश= एक + उनविंश एकान्त= एक + अंत
एकैक=एक+एक कृदन्त=कृत् +अन्त

शब्द रचना:

3.उपसर्ग की परिभाषा-

संस्कृत एवं संस्कृत से उत्पन्न भाषाओं में उस अव्यय या शब्द को उपसर्ग (prefix) कहते

          or

उपसर्ग वे शब्दांश हैं, जो किसी शब्द के पहले जुडते हैं, तथा उसके अर्थ को बदल देते हैं उपसर्ग कहे जाते हैं |

         or

पसर्ग = उप (समीप) + सर्ग (सृष्टि करना) इसका अर्थ है- किसी शब्द के समीप आ कर नया शब्द बनाना। जो शब्दांश शब्दों के आदि में जुड़ कर उनके अर्थ में कुछ विशेषता लाते हैं, वे उपसर्ग कहलाते हैं।

उदाहरण स्वरुप – ‘नाथ’ शब्द में यदि ‘अ’ उपसर्ग जोड दिया जाएँ तो नया शब्द अनाथ हो जायेगा | अब अनाथ शब्द का अर्थ होगा – जिसका कोई न हो |

हिन्दी में प्रचलित उपसर्गों को निम्नलिखित भागों में विभाजित किया जा सकता है।

  1. संस्कृत के उपसर्ग
  2. हिन्दी के उपसर्ग
  3. उर्दू और फ़ारसी के उपसर्ग अंग्रेज़ी के उपसर्ग
  4. उपसर्ग के समान प्रयुक्त होने वाले संस्कृत के अव्यय।

1.संस्कृत के उपसर्ग

संस्कृत में बाइस (22) उपसर्ग हैं। प्र, परा, अप, सम्‌, अनु, अव, निस्‌, निर्‌, दुस्‌, दुर्‌, वि, आ (आङ्‌), नि, अधि, अपि, अति, सु, उत् /उद्‌, अभि, प्रति, परि तथा उप।
उदाहरण

  • अति – (आधिक्य) अतिशय, अतिरेक;
  • अधि – (मुख्य) अधिपति, अध्यक्ष
  • अधि – (वर) अध्ययन, अध्यापन
  • अनु – (मागुन) अनुक्रम, अनुताप, अनुज;
  • अनु – (प्रमाणें) अनुकरण, अनुमोदन.
  • अप – (खालीं येणें) अपकर्ष, अपमान;
  • अप – (विरुद्ध होणें) अपकार, अपजय.
  • अपि – (आवरण) अपिधान = अच्छादन
  • अभि – (अधिक) अभिनंदन, अभिलाप
  • अभि – (जवळ) अभिमुख, अभिनय
  • अभि – (पुढें) अभ्युत्थान, अभ्युदय.
  • अव – (खालीं) अवगणना, अवतरण;
  • अव – (अभाव, विरूद्धता) अवकृपा, अवगुण.
  • आ – (पासून, पर्यंत) आकंठ, आजन्म;
  • आ – (किंचीत) आरक्त;
  • आ – (उलट) आगमन, आदान;
  • आ – (पलीकडे) आक्रमण, आकलन.
  • उत् – (वर) उत्कर्ष, उत्तीर्ण, उद्भिज्ज
  • उप – (जवळ) उपाध्यक्ष, उपदिशा;
  • उप – (गौण) उपग्रह, उपवेद, उपनेत्र
  • दुर्, दुस् – (वाईट) दुराशा, दुरुक्ति, दुश्चिन्ह, दुष्कृत्य.
  • नि – (अत्यंत) निमग्न, निबंध
  • नि – (नकार) निकामी, निजोर.
  • निर् – (अभाव) निरंजन, निराषा
  • निस् (अभाव) निष्फळ, निश्चल, नि:शेष.
  • परा – (उलट) पराजय, पराभव
  • परि – (पूर्ण) परिपाक, परिपूर्ण (व्याप्त), परिमित, परिश्रम, परिवार
  • प्र – (आधिक्य) प्रकोप, प्रबल, प्रपिता
  • प्रति – (उलट) प्रतिकूल, प्रतिच्छाया,
  • प्रति – (एकेक) प्रतिदिन, प्रतिवर्ष, प्रत्येक
  • वि – (विशेष) विख्यात, विनंती, विवाद
  • वि – (अभाव) विफल, विधवा, विसंगति
  • सम् – (चांगले) संस्कृत, संस्कार, संगीत,
  • सम् – (बरोबर) संयम, संयोग, संकीर्ण.
  • सु – (चांगले) सुभाषित, सुकृत, सुग्रास;
  • सु – (सोपें) सुगम, सुकर, स्वल्प;
  • सु – (अधिक) सुबोधित, सुशिक्षित.

कुछ शब्दों के पूर्व एक से अधिक उपसर्ग भी लग सकते हैं। जैसे –

  • प्रति + अप + वाद = प्रत्यपवाद
  • सम् + आ + लोचन = समालोचन
  • वि + आ + करण = व्याकरण

2.हिन्दी के उपसर्ग

  1. – अभाव, निषेध – अछूता, अथाह, अटल
  2. अन– अभाव, निषेध – अनमोल, अनबन, अनपढ़
  3. कु– बुरा – कुचाल, कुचैला, कुचक्र
  4. दु– कम, बुरा – दुबला, दुलारा, दुधारू
  5. नि– कमी – निगोड़ा, निडर, निहत्था, निकम्मा
  6. – हीन, निषेध – औगुन, औघर, औसर, औसान
  7. भर– पूरा –    भरपेट, भरपूर, भरसक, भरमार
  8. सु– अच्छा – सुडौल, सुजान, सुघड़, सुफल
  9. अध– आधा – अधपका, अधकच्चा, अधमरा, अधकचरा
  10. उन– एक कम – उनतीस, उनसठ, उनहत्तर, उंतालीस
  11. पर– दूसरा, बाद का – परलोक, परोपकार, परसर्ग, परहित
  12. बिन– बिना, निषेध – बिनब्याहा, बिनबादल, बिनपाए, बिनजाने

3.अरबी-फ़ारसी के उपसर्ग

  1. कम– थोड़ा, हीन – कमज़ोर, कमबख़्त, कमअक्ल
  2. खुश– अच्छा – खुशनसीब, खुशखबरी, खुशहाल, खुशबू
  3. गैर– निषेध – गैरहाज़िर, गैरक़ानूनी, गैरमुल्क, गैर-ज़िम्मेदार
  4. ना– अभाव – नापसंद, नासमझ, नाराज़, नालायक
  5. – और, अनुसार – बनाम, बदौलत, बदस्तूर, बगैर
  6. बा– सहित – बाकायदा, बाइज्ज़त, बाअदब, बामौका
  7. बद– बुरा – बदमाश, बदनाम, बदक़िस्मत,बदबू
  8. बे– बिना – बेईमान, बेइज्ज़त, बेचारा, बेवकूफ़
  9. ला– रहित – लापरवाह, लाचार, लावारिस, लाजवाब
  10. सर– मुख्य – सरताज, सरदार, सरपंच, सरकार
  11. हम– समान, साथवाला – हमदर्दी, हमराह, हमउम्र, हमदम
  12. हर– प्रत्येक – हरदिन, हरसाल, हरएक, हरबार

4.उपसर्ग के अन्य अर्थ:

  • बुरा लक्षण या अपशगुन
  • वह पदार्थ जो कोई पदार्थ बनाते समय बीच में संयोगवश बन जाता या निकल आता है (बाई प्राडक्ट)। जैसे-गुड़ बनाते समय जो शीरा निकलता है, वह गुड़ का उपसर्ग है।
  • किसी प्रकार का उत्पात, उपद्रव या विघ्न
  • योगियों की योगसाधना के बीच होनेवाले विघ्न को उपसर्ग कहते हैं।

मुनियों पर होनेवाले उक्त उपसर्गों के विस्तृत विवरण मिलते हैं। जैन साहित्य में विशेष रूप से इनका उल्लेख रहता है क्योंकि जैन धर्म के अनुसार साधना करते समय उपसर्गो का होना अनिवार्य है और केवल वे ही व्यक्ति अपनी साधना में सफल हो सकते हैं जो उक्त सभी उपसर्गों को अविचलित रहकर झेल लें। हिंदू धर्मकथाओं में भी साधना करनेवाले व्यक्तियों को अनेक विघ्नबाधाओं का सामना करना पड़ता है किंतु वहाँ उन्हें उपसर्ग की संज्ञा यदाकदा ही गई है।

प्रमुख उपसर्ग एवं उससे बनें शब्द –

उपसर्ग मूल शब्द नवीन शब्द
नाथ
विश्वास
धर्म
चेतन
अनाथ
अविश्वास
अधर्म
अचेतन
अति क्रम
वृष्टि
अतिक्रम
अतिवृष्टि
अधि कार
मान
अधिकार
अधिमान
अप मान
शब्द
वाद
अपमान
अपशब्द
अपवाद
अनु राग
शासन
करण
अनुरग
अनुशासन
अनुकरण
लेख
हार
आलेख
आहार
उप संहार
मंत्री
उपसंहार
उपमंत्री
अभि मान
शाप
अभिमान
अभिशाप
कु ख्यात कुख्यात
दुर गुण दुर्गुण
ना लायक नालायक
निर भय निर्भय
परा जय
भव
पराजय
पराभव
प्रति घात
कूल
प्रतिघात
प्रतिकूल
वि राग
ज्ञान
विराग
विज्ञान
सु लभ
गम
सुलभ
सुगम
अन जान
मोल
अनजान
अनमोल
मान
पूत
समान
सपूत
सह योग
मत
सहयोग
सहमत
प्र हार
योग
प्रहार
प्रयोग
अवि विकार अविकार
अध मरा अधमरा
बे जान
रहम
बेजान
बेरहम
परि जन
मार्जन
परिजन
परिमार्जन
कम जोर कमजोर
सं कार संहार

शब्द रचना:

4.प्रत्यय की परिभाषा –

प्रति’ और ‘अय’ दो शब्दों के मेल से ‘प्रत्यय’ शब्द का निर्माण हुआ है। ‘प्रति’ का अर्थ ‘साथ में, पर बाद में होता है । ‘अय’ का अर्थ होता है, ‘चलनेवाला’। इस प्रकार प्रत्यय का अर्थ हुआ-शब्दों के साथ, पर बाद में चलनेवाला या लगनेवाला शब्दांश ।
             or
अत: जो शब्दांश के अंत में जोड़े जाते हैं, उन्हें प्रत्यय कहते हैं। जैसे- ‘बड़ा’ शब्द में ‘आई’ प्रत्यय जोड़ कर ‘बड़ाई’ शब्द बनता है।

             or

जो शब्दांश किसी शब्द के अंत मे जुडकर उसके अर्थ को बदल देते हैं उसे प्रत्यय कहते हैं |

उदाहरण स्वरुप – ‘मीठा’ शब्द में ‘आई’ प्रत्यय जोडने से मिठाई शब्द बनता है |

प्रत्यय के प्रकार :
  1. संस्कृत के प्रत्यय
  2. हिंदी के प्रत्यय
  3. विदेशी भाषा के प्रत्यय

1.संस्कृत के प्रत्यय:

के दो मुख्य भेद हैं: 1- कृत् और 2- तद्धित 

1-कृत्-प्रत्यय (Krit Pratyay):

क्रिया अथवा धातु के बाद जो प्रत्यय लगाये जाते हैं, उन्हें कृत्-प्रत्यय कहते हैं । कृत्-प्रत्यय के मेल से बने शब्दों को कृदंत कहते हैं ।

कृत प्रत्यय के उदाहरण:

  • अक = लेखक , नायक , गायक , पाठक
  • अक्कड = भुलक्कड , घुमक्कड़ , पियक्कड़
  • आक = तैराक , लडाक
*कृत प्रत्यय के प्रकार (krit pratyay ke bhed)::

1.विकारी कृत्-प्रत्यय (Vikari Krit Pratyay ):

ऐसे कृत्-प्रत्यय जिनसे शुद्ध संज्ञा या विशेषण बनते हैं।

विकारी कृत्-प्रत्यय के भेद (Vikari Krit Pratyay ke Bhed):

  1. क्रियार्थक संज्ञा,
  2. कतृवाचक संज्ञा,
  3. वर्तमानकालिक कृदंत
  4. भूतकालिक कृदंत

2.अविकारी या अव्यय कृत्-प्रत्यय (Avikari Krit Pratyay):

ऐसे कृत्-प्रत्यय जिनसे क्रियामूलक विशेषण या अव्यय बनते है।

 

हिंदी क्रियापदों के अंत में कृत्-प्रत्यय के योग से छह प्रकार के कृदंत शब्द बनाये जाते हैं-

* हिंदी के कृत्-प्रत्यय (Hindi ke Krit Pratyay)

हिंदी में कृत्-प्रत्ययों की संख्या अनगिनत है, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं- अन, अ, आ, आई, आलू, अक्कड़, आवनी, आड़ी, आक, अंत, आनी, आप, अंकु, आका, आकू, आन, आपा, आव, आवट, आवना, आवा, आस, आहट, इया, इयल, ई, एरा, ऐया, ऐत, ओडा, आड़े, औता, औती, औना, औनी, औटा, औटी, औवल, ऊ, उक, क, का, की, गी, त, ता, ती, न्ती, न, ना, नी, वन, वाँ, वट, वैया, वाला, सार, हार, हारा, हा, हट, इत्यादि । ऊपर बताया जा चुका है कि कृत्-प्रत्ययों के योग से छह प्रकार के कृदंत बनाये जाते हैं। इनके उदाहरण प्रत्यय, धातु (क्रिया) तथा कृदंत-रूप के साथ नीचे दिये जा रहे हैं-

  1. कतृवाचक
  2. गुणवाचक
  3. कर्मवाचक
  4. करणवाचक
  5. भाववाचक
  6. क्रियाद्योदक
1.कर्तृवाचक कृदंत:

क्रिया के अंत में आक, वाला, वैया, तृ, उक, अन, अंकू, आऊ, आना, आड़ी, आलू, इया, इयल, एरा, ऐत, ओड़, ओड़ा, आकू, अक्कड़, वन, वैया, सार, हार, हारा, इत्यादि प्रत्ययों के योग से कर्तृवाचक कृदंत संज्ञाएँ बनती हैं ।

  • प्रत्यय- धातु – कृदंत-रूप
  • आक – तैरना – तैराक
  • आका – लड़ना – लड़ाका
  • आड़ी- खेलना- ख़िलाड़ी
  • वाला- गाना -गानेवाला
  • आलू – झगड़ना – झगड़ालू
  • इया – बढ़ – बढ़िया
  • इयल – सड़ना- सड़ियल
  • ओड़ – हँसना – हँसोड़
  • ओड़ा – भागना -भगोड़ा
  • अक्कड़ -पीना- पियक्कड़
  • सार – मिलना – मिलनसार
  • क – पूजा – पूजक
  • हुआ – पकना – पका हुआ
  • जैसे-वाला, द्वारा, सार, इत्यादि ।

कर्तृवाचक कृदंत निम्न तरीके से बनाये जाते हैं-

  •  क्रिया के सामान्य रूप के अंतिम अक्षर ‘ ना’ को ‘ने’ करके उसके बाद ‘वाला” प्रत्यय जोड़कर । जैसे-चढ़ना-चढ़नेवाला, गढ़ना-गढ़नेवाला, पढ़ना-पढ़नेवाला, इत्यादि
  • ‘ ना’ को ‘न’ करके उसके बाद ‘हार’ या ‘सार’ प्रत्यय जोड़कर । जैसे-मिलना-मिलनसार, होना-होनहार, आदि ।
  •  धातु के बाद अक्कड़, आऊ, आक, आका, आड़ी, आलू, इयल, इया, ऊ, एरा, ऐत, ऐया, ओड़ा, कवैया इत्यादि प्रत्यय जोड़कर । जैसे-पी-पियकूड, बढ़-बढ़िया, घट-घटिया, इत्यादि ।
2.गुणवाचक कृदन्त:

क्रिया के अंत में आऊ, आलू, इया, इयल, एरा, वन, वैया, सार, इत्यादि प्रत्यय जोड़ने से बनते हैं:

    • प्रत्यय – क्रिया – कृदंत-रूप
    • आऊ – टिकना – टिकाऊ
    • वन – सुहाना – सुहावन
    • हरा – सोना – सुनहरा
    • ला – आगे, पीछे – अगला, पिछला
    • इया – घटना- घटिया
    • एरा – बहुत – बहुतेरा
    • वाहा – हल – हलवाहा
3.कर्मवाचक कृदंत:

जिन कृत्-प्रत्ययों के योग से बने संज्ञा-पदों से कर्म का बोध हो, उन्हें कर्मवाचक कृदंत कहते हैं । क्रिया के अंत में औना, हुआ, नी, हुई इत्यादि प्रत्ययों को जोड़ने से बनते हैं ।

    • प्रत्यय – क्रिया – कृदंत-रूप
    • नी – चाटना, सूंघना – चटनी, सुंघनी
    • औना – बिकना, खेलना – बिकौना, खिलौना
    • हुआ – पढना, लिखना – पढ़ा हुआ, लिखा हुआ
    • हुई – सुनना, जागना – सुनी हुईम जगी हुई
4.करणवाचक कृदंत:

जिन कृत्-प्रत्ययों के योग से बने संज्ञा-पदों से क्रिया के साधन का बोध होता है, उन्हें करणवाचक कृत्-प्रत्यय तथा इनसे बने शब्दों को करणवाचक कृदंत कहते हैं ।  क्रिया के अंत में आ, आनी, ई, ऊ, ने, नी इत्यादि प्रत्ययों के योग से करणवाचक कृदंत संज्ञाएँ बनती हैं तथा इनसे कर्ता के कार्य करने के साधन का । बोध होता है ।

    • प्रत्यय – क्रिया – कृदंत-रूप
    • आ – झुलना – झुला
    • ई – रेतना – रेती
    • ऊ – झाड़ना – झाड़ू
    • न – झाड़ना – झाड़न
    • नी – कतरना – कतरनी
    • आनी – मथना – मथानी
    • अन – ढकना – ढक्कन
5.भाववाचक कृदंत:

जिन कृत्-प्रत्ययों के योग से बने संज्ञा-पदों से भाव या क्रिया के व्यापार का बोध हो, उन्हें भाववाचक कृत्-प्रत्यय तथा इनसे बने शब्दों को भाववाचक कृदंत कहते हैं क्रिया के अंत में अ, आ, आई, आप, आया, आव, वट, हट, आहट, ई, औता, औती, त, ता, ती इत्यादि प्रत्ययों के योग से भाववाचक कृदंत बनाये जाते हैं तथा इनसे क्रिया के व्यापार का बोध होता है ।

  • प्रत्यय – क्रिया -कृदंत-रूप
  • अ – दौड़ना -दौड़
  • आ – घेरना – घेरा
  • आई – लड़ना- लड़ाई
  • आप- मिलना- मिलाप
  • वट – मिलना -मिलावट
  • हट – झल्लाना – झल्लाहट
  • ती – बोलना -बोलती
  • त – बचना -बचत
  • आस -पीना -प्यास
  • आहट – घबराना – घबराहट
  • ई – हँसना- हँसी
  • एरा – बसना – बसेरा
  • औता – समझाना – समझौता
  • औती मनाना मनौती
  • न – चलना – चलन
  • नी – करना – करनी
  • जैसे-मिलाप, लड़ाई, कमाई, भुलावा,
6.क्रियाद्योदक कृदंत:

जिन कृत्-प्रत्ययों के योग से क्रियामूलक विशेषण, संज्ञा, अव्यय या विशेषता रखनेवाली क्रिया का निर्माण होता है, उन्हें क्रियाद्योतक कृत्-प्रत्यय तथा इनसे बने शब्दों को क्रियाद्योतक कृदंत कहते हैं । मूलधातु के बाद ‘आ’ अथवा, ‘वा’ जोड़कर भूतकालिक तथा ‘ता’ प्रत्यय जोड़कर वर्तमानकालिक कृदंत बनाये जाते हैं । कहीं-कहीं हुआ’ प्रत्यय भी अलग से जोड़ दिया जाता है ।

क्रिया के अंत में ता, आ, वा, इत्यादि प्रत्ययों के योग से क्रियाद्योदक विशेषण बनते हैं. यद्यपि इनसे क्रिया का बोध होता है परन्तु ये हमेशा संज्ञा के विशेषण के रूप में ही प्रयुक्त होते हैं-

  • प्रत्यय – क्रिया – कृदंत-रूप
  • ता – बहना- बहता
  • ता – भरना – भरता
  • ता – गाना – गाता
  • ता – हँसना – हँसता
  • आ – रोना – रोया
  • ता हुआ – दौड़ना – दौड़ता हुआ
  • ता हुआ – जाना – जाता हुआ

 

2-तद्धित प्रत्यय (Taddhit Pratyay):

संज्ञा, सर्वनाम तथा विशेषण के अंत में लगनेवाले प्रत्यय को ‘तद्धित’ कहा जाता है । तद्धित प्रत्यय के मेल से बने शब्द को तद्धितांत कहते हैं ।

तद्धित प्रत्यय के उदाहरण:

  • लघु + त = लघुता
  • बड़ा + आई = बड़ाई
  • सुंदर + त = सुंदरता
  • बुढ़ा + प = बुढ़ापा

*तद्धित प्रत्यय के प्रकार:

हिंदी में तद्धित प्रत्यय के आठ प्रकार हैं-

  1. कर्तृवाचक,
  2. भाववाचक,
  3. ऊनवाचक,
  4. संबंधवाचक,
  5. अपत्यवाचक,
  6. गुणवाचक,
  7. स्थानवाचक तथा
  8. अव्ययवाचक ।
1.कर्तृवाचक तद्धित प्रत्यय (Kartri Vachak Taddhit Pratyaya):

संज्ञा के अंत में आर, आरी, इया, एरा, वाला, हारा, हार, दार, इत्यादि प्रत्यय के योग से कर्तृवाचक तद्धितांत संज्ञाएँ बनती हैं ।

  • प्रत्यय- शब्द- तद्धितांत
  • आर – सोना- सुनार
  • आरी – जूआ – जुआरी
  • इया – मजाक- मजाकिया
  • वाला – सब्जी – सब्जीवाला
  • हार – पालन – पालनहार
  • दार – समझ – समझदार
2.भाववाचक तद्धित प्रत्यय (Bhav Vachak Taddhit Pratyaya):

संज्ञा या विशेषण में आई, त्व, पन, वट, हट, त, आस पा इत्यादि प्रत्यय लगाकर भाववाचक तद्धितांत संज्ञा-पद बनते हैं । इनसे भाव, गुण, धर्म इत्यादि का बोध होता है ।

  • प्रत्यय -शब्द – तद्धितांत रूप
  • त्व – देवता- देवत्व
  • पन – बच्चा – बचपन
  • वट – सज्जा -सजावट
  • हट – चिकना -चिकनाहट
  • त – रंग – रंगत
  • आस – मीठा – मिठास
3.ऊनवाचक तद्धित प्रत्यय (Un Vachak Taddhit Pratyaya):

संज्ञा-पदों के अंत में आ, क, री, ओला, इया, ई, की, टा, टी, डा, डी, ली, वा इत्यादि प्रत्यय लगाकर ऊनवाचक तद्धितांत संज्ञाएँ बनती हैं। इनसे किसी वस्तु या प्राणी की लघुता, ओछापन, हीनता इत्यादि का भाव व्यक्त होता है।

  • प्रत्यय- शब्द – तद्धितांत रूप
  • क – ढोल – ढोलक
  • री – छाता- छतरी
  • इया – बूढी – बुढ़िया
  • ई – टोप- टोपी
  • की – छोटा- छोटकी
  • टा – चोरी – चोट्टा
  • ड़ा – दु:ख – दुखडा
  • ड़ी – पाग – पगडी
  • ली – खाट – खटोली
  • वा – बच्चा – बचवा
4.सम्बन्धवाचक तद्धित प्रत्यय (Sambandh Vachak Taddhit Pratyaya):

संज्ञा के अंत में हाल, एल, औती, आल, ई, एरा, जा, वाल, इया, इत्यादि प्रत्यय को जोड़ कर सम्बन्धवाचक तद्धितांत संज्ञा बनाई जाती है.-

  • प्रत्यय -शब्द – तद्धितांत रूप
  • हाल – नाना -ननिहाल
  • एल – नाक – नकेल
  • आल – ससुर – ससुराल
  • औती – बाप – बपौती
  • ई – लखनऊ – लखनवी
  • एरा – फूफा -फुफेरा
  • जा – भाई – भतीजा
  • इया -पटना -पटनिया
5.अपत्यवाचक तद्धित प्रत्यय (Apatya Vachak Taddhit Pratyaya):

व्यक्तिवाचक संज्ञा-पदों के अंत में अ, आयन, एय, य इत्यादि प्रत्यय लगाकर अपत्यवाचक तद्धितांत संज्ञाएँ बनायी जाती हैं । इनसे वंश, संतान या संप्रदाय आदि का बोध होता हे ।

  • प्रत्यय – शब्द – तद्धितांत रूप
  • अ – वसुदेव -वासुदेव
  • अ – मनु – मानव
  • अ – कुरु – कौरव
  • आयन- नर – नारायण
  • एय- राधा – राधेय
  • य – दिति दैत्य
6.गुणवाचक तद्धित प्रत्यय (Gun Vachak Taddhit Pratyaya):

संज्ञा-पदों के अंत में अ, आ, इक, ई, ऊ, हा, हर, हरा, एडी, इत, इम, इय, इष्ठ, एय, म, मान्, र, ल, वान्, वी, श, इमा, इल, इन, लु, वाँ प्रत्यय जोड़कर गुणवाचक तद्धितांत शब्द बनते हैं। इनसे संज्ञा का गुण प्रकट होता है-

  • प्रत्यय- शब्द – तद्धितांत रूप
  • आ – भूख – भूखा
  • अ – निशा- नैश
  • इक – शरीर- शारीरिक
  • ई – पक्ष- पक्षी
  • ऊ – बुद्ध- बुढहू
  • हा -छूत – छुतहर
  • एड़ी – गांजा – गंजेड़ी
  • इत – शाप – शापित
  • इमा – लाल -लालिमा
  • इष्ठ – वर – वरिष्ठ
  • ईन – कुल – कुलीन
  • र – मधु – मधुर
  • ल – वत्स – वत्सल
  • वी – माया- मायावी
  • श – कर्क- कर्कश
7.स्थानवाचक तद्धित प्रत्यय (Sthan Vachak Taddhit Pratyaya):

संज्ञा-पदों के अंत में ई, इया, आना, इस्तान, गाह, आड़ी, वाल, त्र इत्यादि प्रत्यय जोड़ कर स्थानवाचक तद्धितांत शब्द बनाये जाते हैं. इनमे स्थान या स्थान सूचक विशेषणका बोध होता है-

  • प्रत्यय- शब्द – तद्धितांत रूप
  • ई – गुजरात – गुजरती
  • इया – पटना – पटनिया
  • गाह – चारा – चारागाह
  • आड़ी -आगा- अगाड़ी
  • त्र – सर्व -सर्वत्र
  • त्र -यद् – यत्र
  • त्र – तद – तत्र
8.अव्ययवाचक तद्धित प्रत्यय (Avyay Vachak Taddhit Pratyaya):

संज्ञा, सर्वनाम या विशेषण पदों के अंत में आँ, अ, ओं, तना, भर, यों, त्र, दा, स इत्यादि प्रत्ययों को जोड़कर अव्ययवाचक तद्धितांत शब्द बनाये जाते हैं तथा इनका प्रयोग प्राय: क्रियाविशेषण की तरह ही होता है ।

  • प्रत्यय -शब्द – तद्धितांत रूप
  • दा – सर्व – सर्वदा
  • त्र – एक एकत्र
  • ओं – कोस – कोसों
  • स – आप – आपस
  • आँ – यह- यहाँ
  • भर – दिन – दिनभर
  • ए – धीर – धीरे
  • ए – तडका – तडके
  • ए – पीछा – पीछे

फारसी के तद्धित प्रत्यय:

हिंदी में फारसी के भी बहुत सारे तद्धित प्रत्यय लिये गये हैं। इन्हें पाँच वर्गों में विभाजित किया जुा सकता है-

  1. भाववाचक
  2. कर्तृवाचक
  3. ऊनवाचक
  4. स्थितिवाचक
  5. विशेषणवाचक
1.भाववाचक तद्धित प्रत्यय (Bhavvachak Taddhit Pratyaya):
  • प्रत्यय- शब्द – तद्धितांत रूप
  • आ – सफ़ेद -सफेदा
  • आना -नजर – नजराना
  • ई – खुश – ख़ुशी
  • ई – बेवफा – बेवफाई
  • गी – मर्दाना – मर्दानगी
2.कर्तृवाचक तद्धित प्रत्यय (Kartri Vachak Taddhita Pratyaya):
  • प्रत्यय -शब्द – तद्धितांत रूप
  • कार – पेश – पेशकार॰
  • गार- मदद -मददगार
  • बान – दर – दरबान
  • खोर – हराम – हरामखोर
  • दार – दुकान- दुकानदार
  • नशीन – परदा – परदानशीन
  • पोश – सफ़ेद – सफेदपोश
  • साज – घड़ी – घड़ीसाज
  • बाज – दगा – दगाबाज
  • बीन – दुर् – दूरबीन
  • नामा – इकरार – इकरारनामा
3.ऊनवाचक तद्वित प्रत्यय (Un vachak Taddhita Pratyaya):
  • प्रत्यय- शब्द – तद्धितांत रूप
  • क- तोप – तुपक
  • चा – संदूक -संदूकचा
  • इचा – बाग – बगीचा
4.स्थितिवाचक तद्धित प्रत्यय (Sthiti Vachak Taddhita Pratyaya):
  • प्रत्यय- शब्द – तद्धितांत रूप
  • आबाद- हैदर – हैदराबाद
  • खाना- दौलत – दौलतखाना
  • गाह- ईद – ईदगाह
  • उस्तान- हिंद – हिंदुस्तान
  • शन – गुल- गुलशन
  • दानी – मच्छर- मच्छरदानी
  • बार – दर – दरबार
5.विशेषणवाचक तद्धित प्रत्यय (Visheshan Vachak Taddhita Pratyaya):
  • प्रत्यय- शब्द – तद्धितांत रूप
  • आनह- रोज- रोजाना
  • इंदा – शर्म -शर्मिंदा
  • मंद – अकल- अक्लमंद
  • वार- उम्मीद -उम्मीदवार
  • जादह -शाह – शहजादा
  • खोर – सूद – सूदखोर
  • दार- माल – मालदार
  • नुमा – कुतुब -कुतुबनुमा
  • बंद – कमर – कमरबंद
  • पोश – जीन – जीनपोश
  • साज -जाल- जालसाज

अंग्रेजी के तद्धित प्रत्यय :

हिंदी में कुछ अंग्रेजी के भी तद्धित प्रत्यय प्रचलन में आ गये हैं:

  • प्रत्यय -शब्द – तद्धितांत- रूप प्रकार
  • अर – पेंट – पेंटर – कर्तृवाचक
  • आइट- नक्सल -नकसलाइट – गुणवाचक
  • इयन -द्रविड़ – द्रविड़ियन – गुणवाचक
  • इज्म- कम्यून -कम्युनिस्म – भाववाचक

प्रमुख प्रत्यय तथा उससे बने शब्द –

प्रत्यय नवीन शब्द
ता लघुता,प्रभुता, महानता, सुन्दरता, कविता
त्व महत्व, अपनत्व, बंधुत्व, प्रभुत्व, ममत्व
वट थकावट, लिखावट, सजावट, गिरावट, बनावट
आई पढाई, लिखाई, हँसाई, कठिनाई, भलाई
हट जगमगाहट, घबराहट, गरमाहट
पन बचपन, बालकपन, पागलपन, भोलापन
ईय दैवीय, जातीय, पर्वतीय
वान पहलवान, धनवान, बलवान
मान अपमान, बुद्धिमान, सम्मान, गतिमान
वा दिखावा, पहनावा, भुलावा, छलावा
वैया गवैया, सवैया
इक दैनिक, सैनिक, दैहिक
औती कठौती, फिरौती
आइन पण्डिताइन, ठकुराइन, ललाइन

कृदंत और तद्धित में अंतर (Difference between Kridant and Tadhit):

  • कृत्-प्रत्यय क्रिया अथवा धातु के अंत में लगता है, तथा इनसे बने शब्दों को कृदंत कहते हैं ।
  • तद्धित प्रत्यय संज्ञा, सर्वनाम तथा विशेषण के अंत में लगता है और इनसे बने शब्दों को तद्धितांत कहते हैं ।
  • कृदंत और तद्धितांत में यही मूल अंतर है । संस्कृत, हिंदी तथा उर्दू-इन तीन स्रोतों से तद्धित-प्रत्यय आकर हिंदी शब्दों की रचना में सहायता करते हैं ।

शब्द रचना:

5.समास की परिभाषा –

समास शब्द का शाब्दिक अर्थ है – संक्षिप्त करना | जब दो या दो से अधिक सार्थक शब्दों को मिला कर एक शब्द बना दिया जाय तो उस प्रक्रिया को समास कहा जाता है |
उदाहरणस्वरुप -महान है जो मानव = महामानव

समास के भेद :-

समास के मुख्यत: छ: भेद है –
(i) तत्पुरुष समास ‌‌
(ii) व्दन्व्द समास
(iii) व्दिगु समास
(iv) कर्मधारय समास
(v) बहुव्रीहि समास
(vi) अव्ययीभाव समास

I.तत्पुरुष समास (tatpurush samas in hindi)

इस समास में दूसरा पद प्रधान होता है। यह कारक से जुदा समास होता है। इसमें ज्ञातव्य – विग्रह में जो कारक प्रकट होता है उसी कारक वाला वो समास होता है। इसे बनाने में दो पदों के बीच कारक चिन्हों का लोप हो जाता है उसे तत्पुरुष समास कहते हैं।

तत्पुरुष समास के उदाहरण (tatpurush samas ke udaharan)

  • देश के लिए भक्ति = देशभक्ति
  • राजा का पुत्र = राजपुत्र
  • शर से आहत = शराहत
  • राह के लिए खर्च = राहखर्च
  • तुलसी द्वारा कृत = तुलसीदासकृत
  • राजा का महल = राजमहल
तत्पुरुष समास के भेद (tatpurush samas ke bhed)

वैसे तो तत्पुरुष समास के 8 भेद होते हैं किन्तु विग्रह करने की वजह से कर्ता और सम्बोधन दो भेदों को लुप्त रखा गया है। इसलिए विभक्तियों के अनुसार तत्पुरुष समास के 6 भेद होते हैं।

समानाधिकरण तत्पुरुष समास (कर्मधारय समास) (samanadhikaran tatpurush samas)

जिस तत्पुरुष समास के समस्त होनेवाले पद समानाधिकरण हों, अर्थात विशेष्य-विशेषण-भाव को प्राप्त हों, कर्ताकारक के हों और लिंग-वचन में समान हों, वहाँ ‘कर्मधारय तत्पुरुष समास‘ होता है।

व्यधिकरण तत्पुरुष समास (vyadhikaran tatpurush samas)

जिस तत्पुरुष समास में प्रथम पद तथा द्वतीय पद दोनों भिन्न-भिन्न विभक्तियों में हो, उसे व्यधिकरण तत्पुरुष समास कहते हैं। उदाहरणतया- राज्ञ: पुरुष: – राजपुरुष: में प्रथम पद राज्ञ: षष्ठी विभक्ति में है तथा द्वतीय पद पुरुष: में प्रथमा विभक्ति है। इस प्रकार दोनों पदों में भिन्न-भिन्न विभक्तियाँ होने से व्यधिकरण तत्पुरुष समास हुआ। ये ६ प्रकार का होता है –

  1. कर्म तत्पुरुष समास
  2. करण तत्पुरुष समास
  3. सम्प्रदान तत्पुरुष समास
  4. अपादान तत्पुरुष समास
  5. सम्बन्ध तत्पुरुष समास
  6. अधिकरण तत्पुरुष समास

1.कर्म तत्पुरुष समास (karm tatpurush samas)

इसमें दो पदों के बीच में कर्मकारक छिपा हुआ होता है। कर्मकारक का चिन्ह ‘को’ होता है। को’ को कर्मकारक की विभक्ति भी कहा जाता है। उसे कर्म तत्पुरुष समास कहते हैं।

कर्म तत्पुरुष समास के उदाहरण (karm tatpurush samas ke udaharan)

  • रथचालक = रथ को चलने वाला
  • ग्रामगत = ग्राम को गया हुआ
  • माखनचोर =माखन को चुराने वाला
  • वनगमन =वन को गमन
  • मुंहतोड़ = मुंह को तोड़ने वाला
  • स्वर्गप्राप्त = स्वर्ग को प्राप्त
  • देशगत = देश को गया हुआ
  • जनप्रिय = जन को प्रिय
  • मरणासन्न = मरण को आसन्न

2.करण तत्पुरुष समास (karan tatpurush samas)

जहाँ पर पहले पद में करण कारक का बोध होता है। इसमें दो पदों के बीच करण कारक छिपा होता है । करण कारक का चिन्ह य विभक्ति “के द्वारा” और ‘से’ होता है। उसे करण तत्पुरुष कहते हैं।

करण तत्पुरुष समास के उदाहरण (karan tatpurush samas ke udaharan):

  • स्वरचित =स्व द्वारा रचित
  • मनचाहा = मन से चाहा
  • शोकग्रस्त = शोक से ग्रस्त
  • भुखमरी = भूख से मरी
  • धनहीन = धन से हीन
  • बाणाहत = बाण से आहत
  • ज्वरग्रस्त =ज्वर से ग्रस्त
  • मदांध =मद से अँधा
  • रसभरा =रस से भरा
  • भयाकुल = भय से आकुल
  • आँखोंदेखी = आँखों से देखी

3.सम्प्रदान तत्पुरुष समास (sampradan tatpurush samas)

इसमें दो पदों के बीच सम्प्रदान कारक छिपा होता है। सम्प्रदान कारक का चिन्ह या विभक्ति “के लिए” होती है। उसे सम्प्रदान तत्पुरुष समास कहते हैं।

सम्प्रदान तत्पुरुष समास के उदाहरण (sampradan tatpurush ke udaharan)

  • विद्यालय =विद्या के लिए आलय
  • रसोईघर = रसोई के लिए घर
  • सभाभवन = सभा के लिए भवन
  • विश्रामगृह = विश्राम के लिए गृह
  • गुरुदक्षिणा = गुरु के लिए दक्षिणा
  • प्रयोगशाला = प्रयोग के लिए शाला
  • देशभक्ति = देश के लिए भक्ति
  • स्नानघर = स्नान के लिए घर
  • सत्यागृह = सत्य के लिए आग्रह
  • यज्ञशाला = यज्ञ के लिए शाला
  • डाकगाड़ी = डाक के लिए गाड़ी
  • देवालय = देव के लिए आलय
  • गौशाला = गौ के लिए शाला

4.अपादान तत्पुरुष समास (apadan tatpurush samas)

इसमें दो पदों के बीच में अपादान कारक छिपा होता है। अपादान कारक का चिन्ह (से) या विभक्ति ‘से अलग’ होता है। उसे अपादान तत्पुरुष समास कहते हैं।

अपादान तत्पुरुष समास के उदाहरण (apadan tatpurush samas ke udaharan):

  • कामचोर = काम से जी चुराने वाला
  • दूरागत =दूर से आगत
  • रणविमुख = रण से विमुख नेत्रहीन = नेत्र से हीन
  • पापमुक्त = पाप से मुक्त
  • देशनिकाला = देश से निकाला
  • पथभ्रष्ट = पथ से भ्रष्ट
  • पदच्युत =पद से च्युत
  • जन्मरोगी = जन्म से रोगी
  • रोगमुक्त = रोग से मुक्त

5.सम्बन्ध तत्पुरुष समास (sambandh tatpurush samas)

इसमें दो पदों के बीच में सम्बन्ध कारक छिपा होता है। सम्बन्ध कारक के चिन्ह या विभक्ति “का, के, की” होती हैं। उसे सम्बन्ध तत्पुरुष समास कहते हैं।

सम्बन्ध तत्पुरुष समास के उदाहरण (sambandh tatpurush samas ke udaharan)

  • राजपुत्र = राजा का पुत्र
  • गंगाजल =गंगा का जल
  • लोकतंत्र = लोक का तंत्र
  • दुर्वादल =दुर्व का दल
  • देवपूजा = देव की पूजा
  • आमवृक्ष = आम का वृक्ष
  • राजकुमारी = राज की कुमारी
  • जलधारा = जल की धारा
  • राजनीति = राजा की नीति
  • सुखयोग = सुख का योग
  • मूर्तिपूजा = मूर्ति की पूजा
  • श्रधकण = श्रधा के कण
  • शिवालय = शिव का आलय
  • देशरक्षा = देश की रक्षा
  • सीमारेखा = सीमा की रेखा

6.अधिकरण तत्पुरुष समास (adhikaran tatpurush samas)

इसमें दो पदों के बीच अधिकरण कारक छिपा होता है। अधिकरण कारक का चिन्ह या विभक्ति ‘ में ‘, ‘पर’ होता है। उसे अधिकरण तत्पुरुष समास कहते हैं।

अधिकरण तत्पुरुष समास के उदाहरण (adhikaran tatpurush samas ke udaharan)

  • कार्य कुशल =कार्य में कुशल
  • वनवास =वन में वास
  • ईस्वरभक्ति = ईस्वर में भक्ति
  • आत्मविश्वास = आत्मा पर विश्वास
  • दीनदयाल = दीनों पर दयाल
  • दानवीर = दान देने में वीर
  • आचारनिपुण = आचार में निपुण
  • जलमग्न =जल में मग्न
  • सिरदर्द = सिर में दर्द
  • क्लाकुशल = कला में कुशल
  • शरणागत = शरण में आगत
  • आनन्दमग्न = आनन्द में मग्न
  • आपबीती =आप पर बीती
तत्पुरुष समास के उपभेद (tatpurush samas ke upbhed)
  1. नञ् तत्पुरुष समास
  2. उपपद तत्पुरुष समास
  3. लुप्तपद तत्पुरुष समास

1.उपपद तत्पुरुष समास

ऐसा समास जिनका उत्तरपद भाषा में स्वतंत्र रूप से प्रयुक्त न होकर प्रत्यय के रूप में ही प्रयोग में लाया जाता है। जैसे- नभचर , कृतज्ञ , कृतघ्न , जलद , लकड़हारा इत्यादि ।

2.लुप्तपद तत्पुरुष समास

जब किसी समास में कोई कारक चिह्न अकेला लुप्त न होकर पूरे पद सहित लुप्त हो और तब उसका सामासिक पद बने तो वह लुप्तपद तत्पुरुष समास कहलाता है ।जैसे –

  • दहीबड़ा – दही में डूबा हुआ बड़ा
  • ऊँटगाड़ी – ऊँट से चलने वाली गाड़ी
  • पवनचक्की – पवन से चलने वाली चक्की आदि ।

3.नञ तत्पुरुष समास (nav samas in hindi):

इसमें पहला पद निषेधात्मक होता है उसे नञ तत्पुरुष समास कहते हैं।

नञ तत्पुरुष समास के उदाहरण (nav tatpurush samas ke udaharn):

  • असभ्य =न सभ्य
  • अनादि =न आदि
  • असंभव =न संभव
  • अनंत = न अंत

2.व्दन्व्द समास –

जिस समास मे पूर्व पद तथा उत्तर पद दोनों प्रधान होते है तथा दोनो पदो के बीच में ‘और ‘ शब्द का लोप होता है |उसे व्दंव्द समास कहते है |

द्वन्द समास के भेद (dwand samas ke prakar)

  1. इतरेतरद्वंद्व समास
  2. समाहारद्वंद्व समास
  3. वैकल्पिकद्वंद्व समास
1.इतरेतरद्वंद्व समास (itaretara dvandva)

वो द्वंद्व जिसमें और शब्द से भी पद जुड़े होते हैं और अलग अस्तित्व रखते हों उसे इतरेतर द्वंद्व समास कहते हैं। इस समास से जो पद बनते हैं वो हमेशा बहुवचन में प्रयोग होते हैं क्योंकि वे दो या दो से अधिक पदों से मिलकर बने होते हैं।

इतरेतर द्वंद्व समास के उदाहरण (itaretara dvandva ke udaharan)

  • राम और कृष्ण = राम-कृष्ण
  • माँ और बाप = माँ-बाप
  • अमीर और गरीब = अमीर-गरीब
  • गाय और बैल =गाय-बैल
  • ऋषि और मुनि = ऋषि-मुनि
  • बेटा और बेटी =बेटा-बेटी
2.समाहार द्वन्द्व समास (samahar dwand samas)

समाहार का अर्थ होता है समूह। जब द्वंद्व समास के दोनों पद और समुच्चयबोधक से जुड़ा होने पर भी अलग-अलग अस्तिव नहीं रखकर समूह का बोध कराते हैं , तब वह समाहारद्वंद्व समास कहलाता है। इस समास में दो पदों के अलावा तीसरा पद भी छुपा होता है और अपने अर्थ का बोध अप्रत्यक्ष रूप से कराते हैं।

समाहार द्वन्द्व समास के उदाहरण (samahar dwand samas ke udaharan)

  • दालरोटी = दाल और रोटी
  • हाथपॉंव = हाथ और पॉंव
  • आहारनिंद्रा = आहार और निंद्रा
3.वैकल्पिक द्वंद्व समास (vaikalpik dwand samas ke udaharan)

इस द्वंद्व समास में दो पदों के बीच में या,अथवा आदि विकल्पसूचक अव्यय छिपे होते हैं उसे वैकल्पिक द्वंद्व समास कहते हैं। इस समास में ज्यादा से ज्यादा दो विपरीतार्थक शब्दों का योग होता है। जैसे-

  • पाप-पुण्य =पाप या पुण्य
  • भला-बुरा =भला या बुरा
  • थोडा-बहुत =थोडा या बहुत

व्दन्व्द समास के उदाहरण ‌-

समस्त पद समास-विग्रह /td>
माता-पिता माता और पिता
दिन-रात दिन और रात
पिता-पुत्र पिता और पुत्र
भाई-बहन भाई और बहन
पति-पत्नी पति और पत्नी
देश-विदेश देश और विदेश
गुण-दोष गुण और दोष
पाप-पुण्य पाप और पुण्य
राधा-कृष्ण राधा और कृष्ण
अपना -पराया अपना और पराया
जीवन-मरण जीवन और मरण
अन्न-जल अन्न और जल
चावल-दाल चावल और दाल
चराचर चर और अचर
गंगा-यमुना गंगा और यमुना
हानि-लाभ हानि और लाभ
सुख-दु:ख सुख और दु:ख
भला-बुरा भला और बुरा
नर-नारी नर और नारी
अमीर-गरीब अमीर और गरीब
हाथ-पैर हाथ और पैर
दूध-दही दूध और दही

3.व्दिगु समास की परिभाषा-

जिस समास मे पूर्वपद संख्यावाचक तथा उत्तर पद संख्या का विशेष्य होता है उस समास को व्दिगु समास कहा जाता है |

द्विगु समास के भेद (dvigu samas ke bhed)

  1. समाहारद्विगु समास
  2. उत्तरपदप्रधानद्विगु समास
1.समाहारद्विगु समास (samahar dvigu samas)

समाहार का मतलब होता है समुदाय , इकट्ठा होना , समेटना उसे समाहारद्विगु समास कहते हैं। जैसे :

  • तीन लोकों का समाहार = त्रिलोक
  • पाँचों वटों का समाहार = पंचवटी
  • तीन भुवनों का समाहार =त्रिभुवन
2.उत्तरपदप्रधानद्विगु समास (uttar-pad-pradhan dvigu samas)

उत्तरपदप्रधानद्विगु समास दो प्रकार के होते हैं।

अ)- बेटा या फिर उत्पत्र के अर्थ में। जैसे :-

  • दो माँ का =दुमाता
  • दो सूतों के मेल का = दुसूती।

ब)- जहाँ पर सच में उत्तरपद पर जोर दिया जाता है। जैसे :

  • पांच प्रमाण = पंचप्रमाण
  • पांच हत्थड = पंचहत्थड

व्दिगु समास का उदाहरण :-

समस्त पद समास-विग्रह
त्रिदेव तीन देवों का समूह
त्रिभुज तीन भुजाओं का समूह
त्रिलोक तीन लोकों का समूह
त्रिफला तीन फलों का समूह
त्रिशूल तीन कांटों का समूह
पंचवटी पांच वटो का समूह
पंचगव पांच गायों का समूह
दुधारी दो धारवाला
त्रिभुवन तीन भुवनों का समूह
अष्टाध्यायी आठ अध्यायों का समाहार
तिरंगा तीन रंगो का समाहार
चतुर्युग चार युगो का समूह
चतुष्पाद चार पैरों का समूह
सतसई सात सौ दोहों का समूह
चारपाई चार पावों का समूह
नवरत्न नौ रत्नों का समाहार
अष्टग्रह आठ ग्रहों का समाहार
दोपहर दो पहरो का समाहार
दशावतार दस अवतारों का समूह
शताब्दी सौ वर्षो का समूह
अष्टावक्र आठ वक्रो का समूह
सप्तर्षि सात ऋषियों का समूह

4.कर्मधारय समास की परिभाषा-

कर्मधारय समास में पहला पद विशेषण तथा उत्तर पद विशेष्य होता है, अथवा इस समास मे एक पद उपमेय तथा दूसरा पद उपमान होता है |

कर्मधारय समास के भेद (karmdharay samas ke bhed)

  1. विशेषणपूर्वपद कर्मधारय समास
  2. विशेष्यपूर्वपद कर्मधारय समास
  3. विशेषणोंभयपद कर्मधारय समास
  4. विशेष्योभयपद कर्मधारय समास
1.विशेषण पूर्वपद कर्मधारय समास:

जहाँ पर पहला पद प्रधान होता है वहाँ पर विशेषणपूर्वपद कर्मधारय समास होता है। जैसे :-

  • नीलीगाय = नीलगाय
  • पीत अम्बर =पीताम्बर
  • प्रिय सखा = प्रियसखा
2.विशेष्य पूर्वपद कर्मधारय समास

इसमें पहला पद विशेष्य होता है और इस प्रकार के सामासिक पद ज्यादातर संस्कृत में मिलते हैं। जैसे :

  • कुमारी श्रमणा = कुमारश्रमणा
3.विशेषणोंभयपद कर्मधारय समास –

इसमें दोनों पद विशेषण होते हैं। जैसे :

  • नील – पीत
  • सुनी – अनसुनी
  • कहनी – अनकहनी
4.विशेष्योभयपद कर्मधारय समास

इसमें दोनों पद विशेष्य होते है। जैसे :-

  • आमगाछ ,वायस-दम्पति।

कर्मधारय समास के उपभेद

  1. उपमानकर्मधारय समास
  2. उपमितकर्मधारय समास
  3. रूपककर्मधारय समास
i . उपमानकर्मधारय समास:

इसमें उपमानवाचक पद का उपमेयवाचक पद के साथ समास होता है। इस समास में दोनों शब्दों के बीच से ‘ इव’ या ‘जैसा’ अव्यय का लोप हो जाता है और दोनों पद , चूँकि एक ही कर्ता विभक्ति , वचन और लिंग के होते हैं , इसलिए समस्त पद कर्मधारय लक्ष्ण का होता है। उसे उपमानकर्मधारय समास कहते हैं। जैसे :-

  • विद्युत् जैसी चंचला = विद्युचंचला
ii. उपमितकर्मधारय समास:

यह समास उपमानकर्मधारय का उल्टा होता है। इस समास में उपमेय पहला पद होता है और उपमान दूसरा पद होता है। उसे उपमितकर्मधारय समास कहते हैं। जैसे :

  • अधरपल्लव के समान = अधर – पल्लव ,
  • नर सिंह के समान = नरसिंह।
iii. रूपककर्मधारय समास:

जहाँ पर एक का दूसरे पर आरोप होता है वहाँ पर रूपककर्मधारय समास होता है। जैसे :- मुख ही है चन्द्रमा = मुखचन्द्र।

कर्मधारय समास के उदाहरण –

समस्त पद समास-विग्रह
विद्याधन विद्या रूपी धन
पीतवसन पीला वस्त्र
श्वेतकमल सफेद कमल
कृष्णसर्प काला सर्प
कुमाता बुरी माता
नीलकमल नीला कमल
चंद्रमुख चंद्रमा के समान मुख
घनश्याम घन के समान श्याम
मृगलोचन मृग के समान नेत्र
नरसिंह नर रूपी सिंह
महात्मा महान आत्मा वाला
महावीर महान है जो वीर
नीलगगन नीला गगन
रक्तवर्ण लाल वर्ण
कुबुद्धि खराब बुद्धि
शुभकर्म अच्छा कर्म
प्रधानाध्यापक प्रधान है जो अध्यापक
नीलगाय नीली गाय
चंद्रवदन चंद्रमा के समान वदन

5.बहुब्रीहि समास की परिभाषा –

जिस समास में पूर्व पद तथा उत्तर पद प्रधान न होकर अन्य पद प्रधान होता है उसे बहुब्रीहि समास कहते है |

बहुव्रीहि समास के प्रकार/भेद (bahuvrihi samas ke prakar/bhed)

  1. समानाधिकरण बहुब्रीहि समास
  2. व्यधिकरण बहुब्रीहि समास
  3. तुल्ययोग बहुब्रीहि समास
  4. व्यतिहार बहुब्रीहि समास
  5. प्रादी बहुब्रीहि समास
1.समानाधिकरण बहुब्रीहि समास (samanadhikaran bahuvrihi samas)

इसमें सभी पद कर्ता कारक की विभक्ति के होते हैं लेकिन समस्त पद के द्वारा जो अन्य उक्त होता है ,वो कर्म, करण, सम्प्रदान, अपादान, सम्बन्ध, अधिकरण आदि विभक्तियों में भी उक्त हो जाता है उसे समानाधिकरण बहुब्रीहि समास कहते हैं। जैसे-

  • प्राप्त है उदक जिसको = प्रप्तोद्क
  • जीती गई इन्द्रियां हैं जिसके द्वारा = जितेंद्रियाँ
  • दत्त है भोजन जिसके लिए =दत्तभोजन
  • निर्गत है धन जिससे = निर्धन
  • नेक है नाम जिसका = नेकनाम
  • सात है खण्ड जिसमें = सतखंडा
2.व्यधिकरण बहुब्रीहि समास  (vyadhikaran bahuvrihi samas)

समानाधिकरण बहुब्रीहि समास में दोनों पद कर्ता कारक की विभक्ति के होते हैं लेकिन यहाँ पहला पद तो कर्ता कारक की विभक्ति का होता है लेकिन बाद वाला पद सम्बन्ध या फिर अधिकरण कारक का होता है उसे व्यधिकरण बहुब्रीहि समास कहते हैं। जैसे-

  • शूल है पाणी में जिसके = शूलपाणी
  • वीणा है पाणी में जिसके = वीणापाणी
3.तुल्ययोग बहुब्रीहि समास (tulog bahuvrihi samas)

जिसमें पहला पद ‘सह’ होता है वह तुल्ययोग बहुब्रीहि समास कहलाता है। इसे सहबहुब्रीहि समास भी कहती हैं। सह का अर्थ होता है साथ और समास होने की वजह से सह के स्थान पर केवल स रह जाता है। इस समास में इस बात पर ध्यान दिया जाता है की विग्रह करते समय जो सह दूसरा वाला शब्द प्रतीत हो वो समास में पहला हो जाता है। जैसे –

  • जो बल के साथ है = सबल
  • जो देह के साथ है = सदेह
  • जो परिवार के साथ है = सपरिवार
4.व्यतिहार बहुब्रीहि समास (vyatihar bahuvrihi samas)

जिससे घात या प्रतिघात की सुचना मिले उसे व्यतिहार बहुब्रीहि समास कहते हैं। इस समास में यह प्रतीत होता है की ‘ इस चीज से और उस चीज से लड़ाई हुई। जैसे –

  • मुक्के-मुक्के से जो लड़ाई हुई = मुक्का-मुक्की
  • बातों-बातों से जो लड़ाई हुई = बाताबाती
5.प्रादी बहुब्रीहि समास (pradi bahuvrihi samas)

जिस बहुब्रीहि समास पूर्वपद उपसर्ग हो वह प्रादी बहुब्रीहि समास कहलाता है। जैसे-

  • नहीं है रहम जिसमें = बेरहम
  • नहीं है जन जहाँ = निर्जन

अन्य विशेष समास और उनके उदाहरण-

संयोगमूलक समास (sanyog moolak samas)

संयोगमूलक समास को संज्ञा समास भी कहते हैं। इस समास में दोनों पद संज्ञा होते हैं अथार्त इसमें दो संज्ञाओं का संयोग होता है। जैसे :

  • माँ-बाप, भाई-बहन, दिन-रात, माता-पिता।

आश्रयमूलक समास (aashray moolak samas)

आश्रयमूलक समास को विशेषण समास भी कहा जाता है। यह प्राय कर्मधारय समास होता है। इस समास में प्रथम पद विशेषण होता है और दूसरा पद का अर्थ बलवान होता है। यह विशेषण-विशेष्य, विशेष्य-विशेषण, विशेषण,विशेष्य आदि पदों द्वारा सम्पन्न होता है। जैसे –

  • कच्चाकेला , शीशमहल , घनस्याम, लाल-पीला, मौलवीसाहब , राजबहादुर।

वर्णनमूलक समास (varn moolak samas)

इसे वर्णनमूलक समास भी कहते हैं। वर्णनमूलक समास के अंतर्गत बहुब्रीहि और अव्ययीभाव समास का निर्माण होता है। इस समास में पहला पद अव्यय होता है और दूसरा पद संज्ञा। उसे वर्णनमूलक समास कहते हैं। जैसे-

  • यथाशक्ति , प्रतिमास , घड़ी-घड़ी, प्रत्येक, भरपेट, यथासाध्य।

बहुब्रीहि समास का उदाहरण :-

समस्त पद समास-विग्रह
लम्बोदर लम्बा है उदर (पेट) जिसका अर्थात् गणेश
एकदंत एक दांत है जिसके अर्थात् गणेश
गजानन गज के समान मुख है जिसका अर्थात् गणेश
चतुरानन चार है मुख जिसके अर्थात ब्रह्मा
चक्रधर चक्र धारण करने वाले अर्थात विष्णु
त्रिनेत्र तीन है नेत्र जिसके अर्थात शंकर
गंगाधर गंगा को धारण करने वाले अर्थात शंकर
चंद्र्शेखर चंद्र है शिखर पर जिसके अर्थात शंकर
चन्द्रधर चंद्र को धारण करने वाला अर्थात शंकर
नीलकण्ठ नीला है कण्ठ जिसका अर्थात शंकर
त्रिलोचन तीन नेत्र है जिसके अर्थात शंकर
चंद्रचूड चंद्र है चूडा पर जिसके अर्थात शंकर
मुरलीधर मुरली को धारण करने वाले अर्थात कृष्ण
पीताम्बर पीला है वस्त्र जिसका अर्थात कृष्ण
षडानन छ: मुख है जिसके अर्थात कार्तिकेय
वीणापाणि वीणा है हाथ मे जिसके अर्थात सरस्वती
निशाचर रात्री मे विचरण करने वाले अर्थात राक्षस
विषधर विष को धारण करने वाला अर्थात सर्प
दशानन दस मुख है जिसका अर्थात रावण
पवनपुत्र पवन के पुत्र है जो अर्थात हनुमान
लम्बकर्ण लम्बा है कान जिसका अर्थात गधा

6.अव्ययीभाव समास (avyayibhav samas in hindi)

इसमें प्रथम पद अव्यय होता है और उसका अर्थ प्रधान होता है उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं। इसमें अव्यय पद का प्रारूप लिंग, वचन, कारक, में नहीं बदलता है वो हमेशा एक जैसा रहता है। or दूसरे शब्दों में कहा जाये तो यदि एक शब्द की पुनरावृत्ति हो और दोनों शब्द मिलकर अव्यय की तरह प्रयोग हों वहाँ पर अव्ययीभाव समास होता है संस्कृत में उपसर्ग युक्त पद भी अव्ययीभाव समास ही मने जाते हैं।

अव्ययीभाव समास के उदाहरण (avyayibhav samas ke udaharan)

  • यथाशक्ति = शक्ति के अनुसार
  • यथाक्रम = क्रम के अनुसार
  • यथानियम = नियम के अनुसार
  • प्रतिदिन = प्रत्येक दिन
  • प्रतिवर्ष =हर वर्ष
  • आजन्म = जन्म से लेकर
  • यथासाध्य = जितना साधा जा सके
  • धडाधड = धड-धड की आवाज के साथ
  • घर-घर = प्रत्येक घर
  • रातों रात = रात ही रात में
  • आमरण = म्रत्यु तक
  • यथाकाम = इच्छानुसार

शब्द रचना:

6.तत्सम शब्द की परीभाषा ‌-

संस्कृत भाषा के वे शब्द जो हिंदी भाषा में ज्यों के त्यों प्रयोग मे लाये जाते है तत्सम शब्द कहे जाते है |

तत्सम दो शब्दों से मिलकर बना है – तत +सम , जिसका अर्थ होता है ज्यों का त्यों। जिन शब्दों को संस्कृत से बिना किसी परिवर्तन के प्रयोग में लिया जाता है उन्हें तत्सम शब्द कहते हैं। इनमें ध्वनि परिवर्तन नहीं होता है।

हम कह सकते है की संस्कृत निष्ठ शब्दो का हिंदी मे प्रयोग तत्सम कहा जाता है |
जैसे – अग्नि, अक्षि, कोकिल आदि |

तत्सम और तद्भव शब्दों को पहचानने के नियम :-

(1) तत्सम शब्दों के पीछे ‘ क्ष ‘ वर्ण का प्रयोग होता है और तद्भव शब्दों के पीछे ‘ ख ‘ या ‘ छ ‘ शब्द का प्रयोग होता है।

(2) तत्सम शब्दों में ‘ श्र ‘ का प्रयोग होता है और तद्भव शब्दों में ‘ स ‘ का प्रयोग हो जाता है।

(3) तत्सम शब्दों में ‘ श ‘ का प्रयोग होता है और तद्भव शब्दों में ‘ स ‘ का प्रयोग हो जाता है।

(4) तत्सम शब्दों में ‘ ष ‘ वर्ण का प्रयोग होता है।

(5) तत्सम शब्दों में ‘ ऋ ‘ की मात्रा का प्रयोग होता है।

(6) तत्सम शब्दों में ‘ र ‘ की मात्रा का प्रयोग होता है।

(7) तत्सम शब्दों में ‘ व ‘ का प्रयोग होता है और तद्भव शब्दों में ‘ ब ‘ का प्रयोग होता है।

7.तद्भव शब्द की परीभाषा-

समय और परिस्थिति , स्थान की वजह से तत्सम शब्दों में जो परिवर्तन हुए हैं उन्हें तद्भव शब्द कहते हैं। यानि वो शब्द जो आम बोलचाल की भाषा में प्रयोग तो होते हैं मगर किसी न किसी तत्सम शब्द के विकृत रूप होते हैं

संस्कृत भाषा के वे शब्द जो प्राकृत, अपभ्रंश,पुरानी हिंदी आदि से परिवर्तन के कारण संस्कृत के मूल रूप से विकृत हो गये है तद्भव शब्द कहे जाते है | जैसे – आग ,आँख ,कोयल

आदि|
तत्सम और तद्भव शब्द के उदाहरण –

तत्सम शब्द तद्भव शब्द
अग्नि आग
अंगुलि उँगली
स्तम्भ खंभा
अन्न अनाज
आर्द्र्क अदरक
अंगुष्ठ अंगुठा
कोकिल कोयल
काष्ठ काठ
ओष्ठ ओठ
अश्रु आंसू
क्षीर खीर
गर्दभ गधा
काक कौआ
अवगुण औगुन
अमावस्या अमावस
अद्य आज
अंधकार अँधेरा
श्रवण सरवन
अर्द्ध आधा
आश्चर्य अचरज
ग्रीवा गर्दन
आलस्य आलस
कर्म काम
इक्ष ईख
उच्च ऊँचा
घटिका घडी
कर्पूर कपूर
कंटक काँटा
कर्ण कान
कुमारी कुँवारी
कूप कूआँ
कुम्भकार कुम्हार
कीट कीडा
गोधूम गेहूँ
ग्राहक गाहक
प्रस्तर पत्थर
गृह घर
क्लेश कलेस
ग्राम गाँव
घृत घी
चंद्र चाँद
चर्म चाम
चर्मकार चमार
दधि दहि
कृपा किरपा
मृग मिरग
मनुष्य मानुष
कच्छप कछुआ
धूम्र धुआँ
सप्त सात
छत्र छाता
दंत दाँत
निद्रा नींद
प्रहेलिका पहेली
तडाग तालाब
दंड डंडा
कपोत कबूतर
वर्ष बरस
वधू बहू
वैर बैर
मक्षिका मक्खी
रोदन रोना
वानर बंदर
लक्ष लाख
सूर्य सूरज
चरण चरन
भ्राता भाई
पुष्प फूल
उष्ट्र ऊँट
सौभग्य सुहाग
छिद्र छेद
त्वरित तुरंत
मृत्यु मौत
वार्ता बात
पृष्ठ पीठ
पौष पूस
पुत्रवधू पतोहू
पंच पाँच
नक्षत्र नखत
वाष्प भाप
योगी जोगी
स्कंध कंधा
सूचिका सुई
नारिकेल नारियल
वणिक बनिया
मिष्ठान मिठाई
कार्तिक कातिक
स्तन थन
स्नेह नेह
श्रृंग सींग
सत्य सच

शब्द रचना:

8.पर्यायवाची शब्द की परिभाषा‌ –

किसी भी शब्द के समान अर्थ देने वाले शब्दों को पर्यायवाची शब्द कहते है I जैसे-अग्नि शब्द के पर्यायवाची शव्द है – अनल ,पावक ,आग आदिI
ये शब्द अग्नि का ही अर्थ देते है इसलिये ये पर्यायवाची शब्द कहलाते है I

प्रमुख पर्यायवाची शब्दों की सूची-

शब्द पर्यायवाची शब्द
अग्नि आग,ज्वाला,अनल,पावक
अंधकार तम,अँधेरा,तिमिर
अतिथि मेहमान,आगंतुक,अभ्यागत
असुर दानव,राक्षस,निशाचर,यातुधान
अश्व तुरंग,वाजि,हय,घोटक
आकाश नभ,गगन,अम्बर,व्योम,आसमान
आनंद खुशी,उल्लास,हर्ष,प्रसन्नता
अमृत पीयूष,सुधा,अमी,सोम
आभूषण गहना,अलंकार,जेवर,भूषण
आँख नेत्र,लोचन,नयन,चक्षु,दृग
इंद्र महेंद्र,सुरेंद्र,पुरंदर,देवराज,सुरेश
ईश्वर परमात्मा,प्रभु,भगवान,अखिलेश
इच्छा कामना,मनोरथ,अभिलाषा,चाह
उन्नति प्रगति,विकास,उत्थान,उत्कर्ष
उपवन मदन,अनंग,मनोज,कंदर्प
कामदेव प्रगति,विकास,उत्थान,उत्कर्ष
कोयल वसंतदूत,कोकिला,पिक,कोकिल,श्यामा
किनारा कूल,तट,तीर,पुलिन
किरण रश्मि,अंशु,मरीचिका
कृपा मेहरबानी,अनुग्रह,अनुकम्पा,दया
कृष्ण माधव,गोपाल,मोहन,घनश्याम,केशव
कमल राजीव,सरोज,नीरज,पंकज,जलज,नलिन
खल दुर्जन,नीच,कुटिल,अधम
गणेश लम्बोदर,एकदंत,गजानन,गजवदन,गणपति
गृह घर,निकेतन,आलय,भवन,सदन
गंगा मंदाकिनी,त्रिपथगा,सुरसरिता,भागीरथी,अलकनंदा
चंद्रमा रजनीश,इंदु,सुधाकर,शशि
चतुर निपुण,प्रवीण,दक्ष,कुशल,योग्य,होशियार
चाँदनी कौमुदी,शशिकला,चंद्रिका,ज्योत्स्ना
जल वारि,नीर,पानी,सलिल
जंगल वन,विपिन,कानन,अरण्य
तालाब सरोवर,पुष्कर,जलाशय,तडाग,ताल
तारा नक्षत्र,सितारा,उडु,तारक
तीर बाण,सायक,शर,इषु
तलवार चंद्रहास,शमशीर,खड्ग
दिन दिवस,वासर, दिवा,वार
देवता सुर,देव,अमर
देह तन,वपु,शरीर,काया
धनुष कोदंड,धनु,शरासन,चाप
नारी महिला,रमणी,स्त्री,कामिनी
नौका नाव,तरिणी,पोत,तरी
नौकर भृत्य,परिचारक,सेवक,अनुचर
पति स्वामी,प्राणनाथ,भर्त्ता,आर्यपुत्र
पत्ता किसलय,पत्र,पर्ण,पल्लव
पक्षी विहग,खग,पखेरु,विहंगम,अंडज
पत्नी वामा,प्रिया,गृहिणी,अर्द्धंगिनी,दारा
‌‌पताका ध्वज,निशान,झंडा
पत्थर पाहन,प्रस्तर,पाषाण,अश्म
पवन वायु,समीर,अनिल,मारुत
पिता बाप,जनक,तात
पुत्र सुत,आत्मज,नंदन,तनय
पुत्री आत्मजा,सुता,तनया,बेटी,तनुजा
पृथ्वी वसुधा,वसुंधरा,अवनी,भू,धरती,धरा
प्रकाश रोशनी,प्रभा,ज्योति,छवि
फूल पुष्प,सुमन,कुसुम,प्रसून
बालक शिशु,लड़का,बच्चा,बाल
बंदर कपि,शाखामृग,मर्कट,वानर,हरि
बादल जलद,नीरद,पयोधर,पयोद,वारिद
बिजली दामिनी,चपला,चंचला,तड़ित
ब्राह्मण विप्र,भूदेव,व्दिज,भूसुर
ब्रह्मा अज,प्रजापति,स्वयंभू,विरंचि,विधाता
भौंरा मधुकर,भृंग,अलि,भ्रमर,मधुप
मदिरा शराब,सुरा,मधु,सोमरस
माता जननी,माँ,अम्बा,मातृ
मछली मीन,मत्स्य,मकर
मृत्यु मरण,निधन,देहांत,देहावसान
महादेव शिव,भुतनाथ,शम्भु,त्रिलोचन,शंकेर,भूतेश
मित्र सखा,मीत,सहचर,दोस्त
माधुर्य मधुरिमा,मिठास
मुख आनन,वदन,मुह
मोक्ष मुक्ति,कैवल्य,निर्वाण,परमपद
यमुना कालिंदी,रविसुता,तरणि-तनूजा,सुर्यतनया
युद्ध लड़ाई,समर,रण,संग्राम
राजा भूप,नृप,नरेश,महीप,नृपति
रात्रि रात,रजनी,निशा
वर्षा बरसात,पावस,चौमासा,मेह
विष्णु चक्रपाणि,नरायण,जनार्दन,गरुणध्वज
लता बेल,लतिका,बल्लि,वल्लरी
लक्ष्मी श्री,पद्म,चंचला,रमा,कमला
सरस्वती शारदा,वीणापाणि,वागेश्वरी
सवेरा सुबह,अरुणोदय,प्रात:,सुर्योदय
सुगंध महक,खुशबू,सौरभ
सूर्य भानु,भास्कर,रवि,दिवाकर,आदित्य
सोना स्वर्ण,हेम,कनक,कंचन,कुंदन
हाथी गज,हस्ती,गजेंद्र,दंती
हंस सरस्वतीवाहन,मराल,नीर-क्षीर-विवेक
सिंह शेर,केसरी,वनराज,मृगपति,नाहर

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